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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1024 तुलसो शब्द-कोश 'समुझ, समुझइ : आ०ए० (सं० संबुध्यते>प्रा० संबुज्झइ) । समझता है = बोधगम्य करता है+संवेदन में लाता है (जानता है) । समुझइ खग खग ही के भाषा ।' मा० ७.६२.६ समुझउँ : आ० उए। समझता हूं (था); समझू । बुद्धिगत भले ही कर लूं। 'समुझउँ सुनउँ गुनउँ नहिं भावा ।' मा० ७.११०.५ समुझत : वकृ०० । समझता, समझते । 'समुझत नहिं कछु लाभ न हानी।' मा० १.२५८.२ (२) समझते हुए, समझने में-से-पर । 'समुझत मन दुख भय उ अपारा।' मा० ७.१.१ समुझनि : सं०स्त्री० । समझने की क्रिया, बोध व्यापार । 'भरत रहनि समझनि करतूती।' मा० २.३२५.७ समुझब : (१) भूकृ.पु० । समझना । 'दसा एक समुझब बिलगाना।' मा० १.६८.२ (२) तुम्हें समझना (होगा)। 'समुझब कहब करब तुम जोई ।' मा० २.३२३.८ (तुम समझोगे)। समुझहि : आ०प्रब० (सं० संबुध्यन्ते>प्रा० संबुज्झति>अ० संबुज्झहिं)। समझते हैं, बोधगम्य करते हैं । 'सुनि समुझहिं जन मुदित मन ।' मा० १.२ समुझहु : आ०मब० । तुम समझो, बुद्धिगत करो। 'समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी।' मा० ५.५७.३ समुझाइ : पूकृ० । समझाकर। (१) विवेचित कर, बोधगम्य बनाकर । ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कही समझाइ ।' मा० ३.१४ (२) प्रबोध देकर, सान्त्वना देकर । 'बिदा कोन्हि भगवान् तब बहु प्रकार समुझाइ ।' मा० ७.१८ समुझाइबी : भकृ०स्त्री० । समझानी (चाहिए); विवेचित करनी। 'प्रीति रीति समुझाइबी।' विन० २७८.३ समुझाइहौं : आ०भ० उए । समझाऊंगा, प्रबोध (सान्त्वना या हिसाब-किताब) दूगा । 'घरनी घर का समुझाइहीं जू ।' कवि० २.६ समुझाई : भूक०स्त्री०ब० । प्रबोधित की। मा० ७.३.३ समुझाई : (१) समुझाइ। 'आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई।' मा० १.२०५.६ (२) भूकृ०स्त्री० । समझाई, विवेचित की । 'यहि बिधि सकल कथा समझाई।' मा० ४.४.५ (३) प्रबोधित की, सान्त्वना देकर शान्त की। 'समुझाई गहि बांह उठाई।' मा० ३.२२.१ समुझाउ : आ०-आज्ञा-मए । तू समझा, शान्त कर । 'करि बिनती समुझाउ कुमारा।' मा० ४.२०.३ समुझाए : भूक००० । विवेचित कर ज्ञात कराये । 'प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए।' मा० ६.१६.६ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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