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पांडु: पाण्डवों के पिता का नाम । दो० ४१६
पांडुबधू : द्रौपदी | कवि० ७.८
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पांडर : सं०पु० (सं० पाण्डर) । चमेली (पुष्प) । गी० २.४३.३ पांडव : पाण्डुपुत्र = युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव । दो० ४२६ पांडव : ( पांडवन + इ) पाण्डवों को । 'प्रभु प्रसाद सौभाग्य बिजय जस पांडवन बरिआइ बरें ।' विन० १३७.४
तुलसी शब्द-कोश
पांडुसुत: पांडव । विन० १०६.४
पांड्सुतन : पांडुसुत + संब० । पाण्डवों। 'पांडवन की करनी ।' विन० २३६.२ पाँति, ती : सं०स्त्री० (सं० पक्ति > प्रा० पंति ) । (१) श्रेणी । मा० १.६६.७ (२) जेवनार में उच्च-नीच के अनुसार बिठाई जाने वाली पंगत । 'छोटी जातिपाँति । कवि० ७ १८ पाय : (१) पाय । पैर
पर । 'महरि तेरे पाँय पायनि: पायन्ह | पैरों में पाँव : पाउँ । पैर । 'क हैं
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पाँगुरे को हाथ पाय ।' बिन० ६६.३ (२) पायँ । पैरों परौं ।' कृ० ७
'पैंजनी पाँयनि बाजति ।' गी० १.३२.२
सब सचिव पुकारि पाँव रोपि हैं ।' कवि० ६.१
पाँवड़े : सं०पु० (सं० पादपट > प्रा० पावड = पावडय) ब० । पैरों के नीचे स्वागतार्थं बिछाये जाने वाले वस्त्र । 'पट पाँवड़े परहिं बिधि नाना । मा०
१.३१६.३
पाँवर : पावर । 'पाँवर पूर्जाह भूत ।' दो० ६५
पॉवरनि: पाँवर + संब० । नीच जनों । 'पाँवरनि पर प्रीति । विन० २१४.१ पाँवरि रो : पावरी । 'खड़ाऊँ । 'पाँवरि पुलकि लई है । गी० २.७८.२ रा०प्र०
२.५.५
पाँसुरी : पसली से । 'मसक की पाँसुरीं पयोधि पाटियतु है ।' कवि ० ७.६६
पाँसुरी : सं० स्त्री० (सं० पशू > प्रा० पंसू = पंसुल्ली = पंसुली ) । पसली, वक्ष के पार्श्वभाग की हड्डी |
पाँसे : पासे । 'भली भाँति भले पैंत भले पाँसे परिगे । गी० २.३२.४
पापाय (सं० पाद > प्रा० पाअ ) । चरण, पैर । 'मारतहूं पा परिअ तुम्हारें ।'
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मा० १.२७३.७
पाइँ : पायें। पैरों में । 'पाईं पनह्यो न ।' गी० २.२७.३
पाइ : (१) पाय । पैर । पाइ तर आइ रह्यों ।' कवि० ७.१६६ (२) पूकृ० (सं० प्राप्य > प्रा० पाविअ > अ० पावि) । पाकर । 'खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू ।' मा० १.७.४
पाइअ य, ये : आ०कवा०प्र० (सं० प्राप्यते > प्रा० पावीअइ ) । पाया जाता है । 'सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा । मा० १.३५.७