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तुलसी शब्द-कोश
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'पहुंचाव पहुंचावड : आ.प्रए० (अ० पहुच्चावइ) । गन्तव्य प्राप्त कराता है । ___ 'जो पहुंचाव राम-पुर तनु अवसान ।' बर० ६७ ।। पहुंचावन : भकृ० अव्यय । पहुंचाने, भेजने । 'संग चले पहुंचावन राजा ।' मा०
१.३३६.४ पहुंचावहिं : आ०प्रब० (अ० पहुच्चावहिं) । पहुंचाते-ती हैं । “पहुंचावहिं फिरि
मिलहिं बहोरी।' मा० १.३३७.७ पहुंचावा : भूकृ.पु । पहुंचाया, साथ ले जाकर भेज दिया। 'कपि पुनि बैद तहाँ ___ पहुंचावा ।' मा० ६.६२.४ पहुंचि : पूकृ० । पहुंचकर । कृ० ४५ पहुंचियाँ : पहुंची+ब० । हस्ता-भरण-विशेष । 'पंकज पानि पहुंचियाँ राजै ।' गी०
पहुंची : (१) सं०स्त्री० । हस्ता-भरण-विशेष । 'पहुंची कर कंजनि ।' कवि० १.२
(२) भूकृ०स्त्री० ! गन्तव्य प्राप्त हुई। 'पहुंची जाइ जनेत ।' मा० १.३४३ पहुचे : भूकृ०पु०ब० । 'मुनि आश्रम पहुंचे सुरभूपा ।' मा० ३.१२.५ पहुचैहउँ' : आ०भ० उए० (अ० पहुच्चाविहिउँ) । पहुंचा दूंगा। 'पहुंचैहउँ सोवतहि
निकेता।' मा० १.१६६.८ पहुचावहिं : पहुंचावहिं । पा०म० १४३ पहुनई, नाई : सं०स्त्री० (सं० प्रधुणता>प्रा० पहुणया) । आतिथ्य, अतिथि
सत्कार । 'भूप पहुनई करन पठाई।' मा० १.३०६.८ पहुनाई : पहुनाई में, अतिथि रूप में । 'दिन द्वै जनु औध हुते पहुनाईं।' कवि० २.२ पहुनाई : पहुनई । पहुनाई करि हरहु श्रम ।' मा० २.२१३ पांउ : पाउ । 'भयो रजायसु पांउ धारिए ।' गी० ५.३५.२ पांगुरे : संपु० (सं० पङ्गल) पंगु । 'पांगुरे को हाथ पाय आँधरे को आँखि है ।'
विन०६६.३ पांच : पंच। मा० २.२४.१ पाँचद : पाँचै । पाँचवीं+पञ्चमी तिथि । विन० २०३.६ पांचसर : पंचबाण (सं० पञ्चशर) । कामदेव । गी० ७.१८.१ पांचहि : पंचों को, सभी जनवर्गों को। 'जौं पाँचहि मत लागइ नीका ।' मा०
२.५.३ पांचा : पाँच । 'कहहिं परसपर मिलि दस पाँचा।' मा० २.२०६.२ पांचें : सं०स्त्री० (सं० पञ्चमी) । पाख की पांचवीं तिथि । पा०म० ५ पाँचो : पञ्च भी, जनवर्ग भी । 'बहुरि पूंछिये पांचो।' विन० २७७.३ पॉछि : पू० (सं० प्रतक्ष्य>प्रा० पच्छिअ>अ० पच्छि) । त्वचा छील कर, खुरच
कर । मरमु पाछि जनु माहुरु देई ।' मा० २.१६०.७
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