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तुलसी शब्द-कोश
पहिरावत : वकृ.पु० (सं० परिधापयत् >प्रा० परिहावंत)। पहनाता। 'लसत
ललित कर कमल माल पहिरावत ।' जा०म० १०६ पहिरावनि : सं०स्त्री (सं० परिधापना>प्रा० परिहावणा>अ० परिहावणी=
परिहावणि) । परिधानोपहार; पहनावे की भेंट । 'रुचि बिचारि पहिरावनि
दीन्ही ।' मा० १.३५३.५ पहिरावहि : आ०मए० । तू पहना । रचि रचि हार..... राम नृपहि पहिरावहि ।'
विन० २३७.४ पहिरावहु : आ०मब० । पहनावो । 'पहिरावहु जयमाल सुहाई।' मा० १.२६४.५ पहिरावौं : आउए । पहनाऊँ, पहनाती हूं। हार बेल पहिरावों चंपक होत ।'
बर० १३ पहिरावौ : पहिरावहु । 'पहिरावो राघो जू को सखियाँ सिखावतीं।' कवि० १.१३ पहिरि : पूकृ० । पहन कर। 'अगरी पहिरि कंडि सिर धरहीं।' मा० २.१६१.५ पहिरिअ : आ०कवा०प्रए० । पहना जाता है। 'खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें।'
मा० २.१६.४ पहिरें: क्रि०वि० । पहने हुए (पहन कर) । 'कहत चले पहिरें पट नाना ।' मा०
१.२६६.१ पहिरे : भूकृ००ब० । पहन लिये । 'कुडल कंकन पहिरे ब्याला ।' मा० १.६२.२ पहिलिहिं : पहली ही । 'पहिलिहिं पवरि सुसामध भा सुखदायक।' पा०म० ११७ पहिलेहि : पहिले ही । मा० १.२२६ पहिलो : वि.पुं०कए० (सं० प्रथमः>प्रा० पहिल्लो) । पहला । 'ऐसिओ मूरति देखे
रह्यो पहिलो बिचारु ।' गी० १.८२.३ पहुंच : सं०स्त्री० (सं० प्रभुत्व>प्रा० पहुत्त>अ० पहुच्च)। गति, अधिकार । ___'राजनीति पहुंच जहाँ लौं जाकी रही है।' गी० ५.२४.१ पहुंचति : वकृ०स्त्री० । पहुंचती, अटती। 'बाहु बिसाल जान लगि पहुंचति ।' गी०
१.१७.७ पहुंचाइ : पूकृ० । भेज कर, प्रेषित कर। 'गए ते प्रभुहि पहुंचाइ फिरे ।' गी०
२.६६.५ पहुंचाई : भूक स्त्री०ब० । भेजी। 'सम सनेह जननीं पहुंचाई।' मा० २.३२०.५ पहुंचाई : पहुंचाइ । 'आयसु पाइ फिरे पहुंचाई ।' मा० १.३६०.१० पहुंचाउ : आ०~-आज्ञा-मए । तू पहुंचा। तहां मोहि पहुंचाउ ।' मा० २.१४६ पहुंचाए : भूकृ०पू०ब० । 'अति आदर सब कपि पहुंचाए।' मा० ७.१६.६ पहुंचाएसि : आ०-भूकृ०पु+प्रए० । उसने पहुंचाया। 'पहुंचाएसि छन माझ
निकेता।' मा० १.१७१.७
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