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तुलसी शब्द-कोश
सत्तरि : संख्या (सं० सप्तति>प्रा० सत्तरि) । सत्तर । मा० १.१५६.८ सत्य : वि०+सं०० (सं०) । परमार्थ, यथार्थ, सत् । मा० १.६.११ सत्यकृत : वि०पू० (सं० सत्यकृत्) । सत्य का कर्ता। वैष्णवमत में जगत्प्रपञ्च सत्य
है, उसका कर्ता= परमेश्वर । विन० ५३.५ सत्यकेतु : सं०० (सं०) । एक राजा प्रतापभानु का पिता । मा० १.१५३.२ सत्यता : सं०स्त्री० (सं०) । यथार्थता, वस्तु-सत्ता, वास्तविकता । 'जासु सत्यता ते
जड़ माया । भास सत्य इव ।' मा० १.११७.८ सत्यधाम : वि० (सं० सत्यधामन्)। (१) सत्य प्रकाश (धाम) वाला।
(२) सत्य का अधिष्ठान=सत्य कामता, सत्य-संकल्प आदि कल्याण गुणों का
आधार । (३) परमार्थ तत्त्वरूप । 'सत्यधाम सर्वग्य तुम्ह ।' मा० १.४६ सत्यव्रत : वि० (सं० सत्यव्रत) । सत्य संकल्प, दृढप्रतिज्ञ । मा० २.२०७.४ सत्यमूल : वि.पु. (सं०) । ऐसे, जिनका मूल कारण सत्य है; सत्य से ही जनित ।
'सत्यमूल सब सुकृत सुहाए।' मा० २.२८.६ सत्यरत : वि० (सं०) । सत्य में रमण करने वाला=सत्य संकल्प । विन० ५३.५ सत्यलोक : सात ऊर्ध्व लोकों में सर्वोपरि लोक ==ब्रह्मलोक । मा० १.१३८ सत्यसंकल्प : वि० सं० सत्य: संकल्पो यस्य स सत्यसंकल्प:) । अमोघ संकल्प वाला
(वैष्णव मत में ब्रह्म का यह-सत्यसंकल्पता-कल्याण गुण है)। 'राम सत्य
संकल्प प्रभु ।' मा० ५.४१ सत्यसंध : वि०पू० (सं0- सत्या सन्धा यस्य स सत्यसंध:) । (१) दृढप्रतिज्ञ
(सन्धा=प्रतिज्ञा)। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं।' मा० २.३०.४ (२) अमोघ बाण संधान करने वाला (सन्धा=सन्धान)। 'सत्यसंध छाड़े सर लच्छा।'
मा० ६.६८.३ सत्यसंधान : सत्यसंध (सं.)। विन० ५५.३ सत्यसार : वि० (सं.)। सत्य ही जिनका तथा जिनके लिए सार तत्त्व है=
सत्यधन (सत्त्यव्रती) । मा० ३.४५.८ सत्र : सं० (सं० शत्रु) । शातनकर्ता=मारक । रिपु, वरी । मा० ४.७.१८ सत्रुघुन : सत्रुहन (सं० शत्रुघ्न) । मा० २.१६३.१ सत्रुसमन : सत्रुहन (सं० शत्रुशमन-शमन = अन्तक) । दो० १२१ सत्रुसाल : वि०+सं०० (सं० शत्रुशल्य)। (१) रिपुओं को शल्यवत् चुभने __ वाला । (२) शत्रुघ्न । गी० १.४२.१ सत्रुसूदन : (सं० शत्रुसूदन) । (१) शत्रुसंहारक । (२) शत्रुघ्न नामक दशरथ पुत्र ।
मा० १.३११.७ सत्रुहन : सं०पू० (सं० शत्रुघ्न) । सुमित्रा के छोटे पुत्र का नाम । मा० २.१७३
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