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तुलसो शब्द-कोश
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लपटाइ, ई : (१) पूकृ० । लिपटाकर, लिपटकर । 'सबरी परी चरन लपटाई।'
मा० ३.३४.८ (२) चभोर कर । 'भाजि चले किलकत, मुख दधि ओदन
लपटाइ।' मा० १.२०३ ।। लपटानि, नी : भूकृ०स्त्री० । लिपट गयी। 'बहु बिधि बिलपि चरन लपटानी ।'
मा० २.५७.६ लपटाने : भूकृपु० ब० । लिपटे हुए, आवृत, लिथरे हुए। 'मोह द्रोह ममता
लपटाने ।' मा० ७.१००.१ लपटावहि : आ०प्रब० । लिपटाते हैं, चभोरते हैं। 'भांग धतूर अहार छार
लपटावहिं।' पा०म० ५१ लपट : लपट+ब० ज्वालाएँ । 'लपट झपट सो तमीचर तौंकी ।' कवि० ७.१४३ ‘लपत : वकृ.पुं० (सं० लपत्) । बकवास करते । 'साधन बिनु सिद्धि सकल बिकल
लोग लपत ।' विन० १३०.४ लपेटत : वकृ० । आबद्ध+आवृत कर लेता। 'लंगूर लपेटत पटकि भट।'
कवि० ६.४७ लपेटन : लपेट-+संब० । लपेटों (से), आवरणों (से), पाशबन्धनों (से) । 'कांट ___ कुराय लपेटन लोटन ठावहिं ठाउँ बझाऊ रे ।' विन० १८६.४ लपेटनि : लपेटन । लपेटों+लप्पड़ों (से)। 'बानर भालु चपेट लपेटनि मारत ।'
गी० ६.४.३ लपेटि : पूकृ० । लपेटकर सब ओर से आबद्ध-आवृत कर। 'लेइ लपेटि लवा
जिमि बाजू ।' मा० २.२३०.६ लपेटे : भूकृ.पु.ब ० । ओतप्रोत, चभोरे हुए, आवृत । 'प्रेम लपेटे अटपटे (बैन)।'
मा० २.१०० लबार, रा : वि०० (सं० लप-कार>प्रा० लवार) । वाचाल, बकवादी, मिथ्या
वादी । मा० ६.३४.६-७ लबार : लबार+कए । एक ही झूठा । 'लोकरीति लायक न लंगर लबारु है ।'
कवि० ७.६७ लबेद : (१) सं०पु० (अरबी)। टटू की लादी। (२) वैदिक विधान के
अतिरिक्त लोकिक व्यवहार-विधि । हनु० २८ लय : सं०० (सं.)। (१) तल्लीनता, ध्यानावस्था, समाधि । 'साधक नाम
जपहिं लय लाएँ।' मा० १.२२.४ (२) लगाव, आसक्ति, राग। 'रबि कर जल लय लायो।' विन० १६६.१ (३) प्रलय, युगान्त । 'जग संभव पालन लय कारिणि ।' मा० १.६८.२
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