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तुलसी शब्द-कोश
लज : आ०प्रए० (सं० लज्जते>प्रा० लज्जइ)। 'तदपि अधम बिचरत तेहिं मारग ___ कबहुं न मूढ़ लज।' विन० ८६.३ लटकन : सं० । आभूषणविशेष । 'लटकन ललित ललाट ।' गी० १.२२.७ लटके : आ० प्रब० । लम्बमान हैं। लटक रही हैं। 'घु घरारि लटें लटकै मुख
ऊपर ।' कवि० १.५ लटत : वकृ०० (सं० लटत् - लट बाल्ये)। ललचा कर टूट पड़ता (बच्चों के
समान लटपटाता) । 'गुजा लखि लटत ।' विन० १२९.४ (२) शिथिल होता
होते । 'न लटत तन जर्जर भए।' मा० ६.४६ छं० लटपटेनि : भूक.पुंसंब० । लटपटों, स्खलितों, थके हुओं (की)। 'लटे लटपटेनि
कौन पीर गहैगो।' विन ० २५६.३ लटि : पूक० । (१) बाल हट करके, बचकाना प्रयास कर । 'करहु राज रघुराज
चरन तजि, ले लटि लोगु रहा है।' गी० २.६४.१ (२) थककर, शिथिल
होकर । 'रहौं दरबार परो लटि लूलो।' हनु० ३६ लटी : भूक०स्त्री० । जर्जर हो गयी, थक गई । 'रटत रटत रसना लटी।' दो०
२८० लटू : वि० । (लट =बालक के समान) मुग्ध । 'जा सुख की लालसा लटू सिब ।'
गी० ८.५ लटूरी : संस्त्री०ब० । घुघराली-उलझी अलके । 'लटकन लसत ललाट लटूरी ।'
गी० १.३१.४ लटे : भूकृपु०ब ० । जर्जर, शिथिल । 'लटे लटपटेनि कौन पीर हरंगो।' विन०
२५६.३ लौ : संस्त्री० (लट) ब० । अलकें, केशपुञ्ज । 'घुघरारि लट लटकै मुख ऊपर।' ____ कवि० १.५ लट्यो : भूकृ.पु.कए । जर्जर हुआ, शिथिल पड़ गया। 'रटत रटत लट्यो।'
विन० २६०.३ लड़ाइ : पूकृ० । लाड़ (दुलार) करके ; स्नेह-सम्मान करके। 'प्रमुदित महामुनिबद
बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ के।' मा० १.३२६ छं० १ लता : सं०स्त्री० (सं०) । वल्ली, बौंड़ । मा० १.३७.१३ लताभवन : लताओं का घना झुरमुट; लताओं का कृत्रिम मण्डप । मा० १.२३२ लपट : सं० स्त्री० । आसपास को लपेटने वाली वायवेग से फैलती हुई अग्निज्वाला।
'झपट लपट बहु कोटि कराला ।' मा० ५.२६.२ 'लपटा, लपटाइ, ई : आ०प्रए० । लपेटता है, आबद्ध एवम् आवृत करता है। 'जनम जनम अभ्यास निरत चित अधिक अधिक लपटाई।' विन० ८२.१
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