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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 942 तुलसी शब्द-कोश लज : आ०प्रए० (सं० लज्जते>प्रा० लज्जइ)। 'तदपि अधम बिचरत तेहिं मारग ___ कबहुं न मूढ़ लज।' विन० ८६.३ लटकन : सं० । आभूषणविशेष । 'लटकन ललित ललाट ।' गी० १.२२.७ लटके : आ० प्रब० । लम्बमान हैं। लटक रही हैं। 'घु घरारि लटें लटकै मुख ऊपर ।' कवि० १.५ लटत : वकृ०० (सं० लटत् - लट बाल्ये)। ललचा कर टूट पड़ता (बच्चों के समान लटपटाता) । 'गुजा लखि लटत ।' विन० १२९.४ (२) शिथिल होता होते । 'न लटत तन जर्जर भए।' मा० ६.४६ छं० लटपटेनि : भूक.पुंसंब० । लटपटों, स्खलितों, थके हुओं (की)। 'लटे लटपटेनि कौन पीर गहैगो।' विन ० २५६.३ लटि : पूक० । (१) बाल हट करके, बचकाना प्रयास कर । 'करहु राज रघुराज चरन तजि, ले लटि लोगु रहा है।' गी० २.६४.१ (२) थककर, शिथिल होकर । 'रहौं दरबार परो लटि लूलो।' हनु० ३६ लटी : भूक०स्त्री० । जर्जर हो गयी, थक गई । 'रटत रटत रसना लटी।' दो० २८० लटू : वि० । (लट =बालक के समान) मुग्ध । 'जा सुख की लालसा लटू सिब ।' गी० ८.५ लटूरी : संस्त्री०ब० । घुघराली-उलझी अलके । 'लटकन लसत ललाट लटूरी ।' गी० १.३१.४ लटे : भूकृपु०ब ० । जर्जर, शिथिल । 'लटे लटपटेनि कौन पीर हरंगो।' विन० २५६.३ लौ : संस्त्री० (लट) ब० । अलकें, केशपुञ्ज । 'घुघरारि लट लटकै मुख ऊपर।' ____ कवि० १.५ लट्यो : भूकृ.पु.कए । जर्जर हुआ, शिथिल पड़ गया। 'रटत रटत लट्यो।' विन० २६०.३ लड़ाइ : पूकृ० । लाड़ (दुलार) करके ; स्नेह-सम्मान करके। 'प्रमुदित महामुनिबद बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ के।' मा० १.३२६ छं० १ लता : सं०स्त्री० (सं०) । वल्ली, बौंड़ । मा० १.३७.१३ लताभवन : लताओं का घना झुरमुट; लताओं का कृत्रिम मण्डप । मा० १.२३२ लपट : सं० स्त्री० । आसपास को लपेटने वाली वायवेग से फैलती हुई अग्निज्वाला। 'झपट लपट बहु कोटि कराला ।' मा० ५.२६.२ 'लपटा, लपटाइ, ई : आ०प्रए० । लपेटता है, आबद्ध एवम् आवृत करता है। 'जनम जनम अभ्यास निरत चित अधिक अधिक लपटाई।' विन० ८२.१ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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