________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
936
तुलसी शब्द-कोश
लंका : सं०स्त्री० (सं.)। (१) रावण की नगरी जिसमें पहले यक्षों का और उससे
भी पूर्व प्राचीन राक्षसों का निवास था। मा० १.१७८.८ (२) एक राक्षसी =
लंकिनी। 'पुनि संभारि उठी सो लंका ।' मा० ५.४.५ लंकापति : लङका का राजा । (१) रावण । मा० ७.७.७ (२) विभीषण । मा०
७.८.१ लंकिनी : सं०स्त्री० । लङका की एक राक्षसी । मा० ५.४.२ लंकेस : लंकापति (सं० लङ के श)। (१) रावण । मा० ३.२२.२ (२) विभीषण।
मा० ५.४६.१ लंगर : वि०+सं०० (सं० लङ्ग =प्रेमा या जार)। लम्पट, व्यभिचारी।
'लोकरीति लायक न लंगर लबारु है।' कवि० ७.६७ लंगरि : लंगर+स्त्री० । कुलटा, दुष्टास्त्री। 'गनति कि ए लंगरि झगराऊ।'
कृ० १२ लंगूर : सं०० (सं० लाङ्गल) । पूंछ । मा० ६.५८.५ लंघन : सं०+वि०० । (१) लांघना (२) लांघने वाला। 'जलधि लंघन सिंह
सिंहिका मद मथन ।' विन० २५.४ लंधि : पू० । (अ.)। लांघ कर । कवि० ५.२८ लंघेउ : भूकृ.पु.कए । लांघ गया, कूद कर पार किया। 'तुलसी प्रभु लंघेउ __जलधि ।' रा०प्र० ५.१.७ लंपट : वि.पु. (सं०) । विषयभोग की तृष्णा वाला; भोगों में स्वेच्छाचारी। ___ मा० १.११५.२ लंबित : भूक ०वि० (सं.) । लटके हुए। 'सोभित स्रवन कनक कुंडल कल लंबित
बिबि भुजमूले।' गी० ७.१२.५ लइ : लेइ । लेकर । 'प्रमुदित मन लइ चलेउ ले वाई ।' मा० २.१६६.८ । लई : भूक स्त्री०ब० । लीं। 'कुअरि लई हकारि के ।' मा० १.३२५ छं० २ लई : भूकृ०स्त्री० । ली। 'ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है।' हनु० ३८ लएँ : लिएँ । लिए हुए । 'बिनु सुधि लएँ करब का भ्राता।' मा० ४.२६.२ लए : भूक०० । लिये, प्राप्त किये, ग्रहण किये। 'सेवक जानिए बिनु गथ लए।'
मा० १.३२६ छं० २ लकड़ी : सं०स्त्री० (सं० लकुटी>प्रा. लक्कुडी)। काष्ठ । दो० ५२६ लकुट : सं०० (सं०) । डंडा, लाठी। 'भूतल परे लकुट की नाई।' मा०
२.२४०.२ लकुटी : सं०स्त्री० (सं०) । छड़ी, छोटा डंडा । कृ० १७ लक्ख : संख्या (सं० लक्ष>प्रा० लक्ख) । लाख । 'लक्ख में पक्खर, तिक्खन तेज ।'
कवि० ६.३६
For Private and Personal Use Only