________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तुलसी शब्द-कोश
937
लक्खन : सं०० (सं० लक्ष्मण>प्रा. लक्खण) । रामानुज । 'ते रन तिक्खन
लक्खन लाखन दानि ज्यों दारिद दाबि दले हैं।' कवि० ६.३३ लक्खनु : लक्खन+कए० । अकेले लक्ष्मण । 'जल को गये लक्खन हैं लरिका ।'
कवि० २.१२ लक्ष्मण : सं०० (सं.)। सौमित्रि, रामानुज । मा० ३ श्लोक २ 'लख लखइ : आ०प्रए० (सं० लक्षयति>प्रा० लक्खइ)। लक्षित करता है,
पहिचानता है (लक्षणों से जानता है)। 'बिप्र बेष गति लखइ न कोऊ ।' मा०
१.१३४.२ लखत : वकृ०० । देखता (पहचानता) । कवि० ६.४१ लखन : (१) लक्खन । मा० १.२५३.१ (२) (लक्षण)-राजलखन सब अंग
तुम्हारें। मा० २.११२.४ लखनहिं : लक्ष्मण के (में) । 'बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं।' मा० १.२७८.४ लखनहि : लक्ष्मण को । 'लखनहि भेटि प्रनाम करि ।' मा० २.३१८ लखनु : लखन+कए । केवल लक्ष्मण । 'लखनु कि रहिहहिं धाम ।' मा० २.४६ लखब : भूक०० (सं० लक्षयितव्य>प्रा. लक्खि अव्व) । लक्षित करना, जान
समझ लेना (चाहिए, होगा)। 'लखब सनेहु सुभायँ सुहाएँ ।' मा० २.१६३.१ लखहिं : आ०प्रब० (सं० लक्षयन्ति>प्रा० लक्खंति>अ० लक्खहिं)। (१) लक्षित
करते हैं, पहचानते हैं । 'लखहिं सुलच्छन लोग ।' मा० १.७ (२) ताकते हैं।
'जे पर दोष लखहिं सहसाखी ।' मा० १.४.४ लखहि : आ.मए० (सं० लक्षयसि>प्रा० लक्खसि>अ० लक्खहि) । तू देखता
है, लक्ष्य करता है । 'तुलसी अलखहि का लखहि ।' दो० १६ लखहु : आ०मब० (सं० लक्षयथ>प्रा. लक्खह>अ० लक्खहु) । लक्षित करते-ती
हो; जान पाते-ती हो । 'लखहु न भूप कपट चतुराई ।' मा० २.१४.६ लखा : भूक०० (सं० लक्षित>प्रा० लक्खिअ)। लक्षित किया, देखा-समझा।
'काहुं न लखा सो चरित बिसेखा।' मा० १.१३४.७ लखाइ : पू० । लक्षित करा, दिखा । 'किधौं कछु काहूं लखाइ दियो है ।' कवि०
७.१५७ लखाई : भूक स्त्री० । दिखाई, लक्षित कराई । 'लखी ओ लखाई ।' गी० ५.२५.३ लखाउ, ऊ : सं०पु०कए । लक्षण, पहचान । 'और एक तोहि कहउँ लखाऊ।'
मा० १.१६६.३ लखाए : भूकृ०० ब ० । दिखाये, लक्षित कराये । 'लता ओट तब सखिन्ह लखाए ।'
मा० १.२३२.३ लखि : (१) पूकृ० (सं० लक्षयित्वा>प्रा० ललिखअ>अ० लक्खि)। लक्षित कर;
देखकर । 'प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी ।' मा० १.२६१.४ सहसा लखि न
For Private and Personal Use Only