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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 935 रोष : क्रुद्ध होने से । 'काहे को कुसल रोषे राम बामदेवहू की।' कवि० ५.६ रोषे : भूकृ०० ब० । क्रुद्ध हुए । 'राजा राढ़ रोषे हैं।' गी० १.६५.१ रोष्यो : भूक ००कए । क्रुद्ध हुआ। रोष्यो रन रावनु ।' कवि० ६.३० रोस, सा : रोष (प्रा.)। कवि० ७.१७२; मा० ३.२६.३ रोसु, सू : रोष । मा० १.२८१ 'मुनि बिन काज करिअ कत रोसू !' मा० १.२७२.३ रोहिनि : सं०स्त्री० (सं० रोहिणी)। चन्द्र पत्नी नक्षत्रविशेष । 'जनु बुध बिधु बिय रोहिनि सोही ।' मा० २.१२३.४ रौंदि : पूकृ० । पैरों से कुचल (कर) । 'भारी भीर ठेलि पेलि रौंदि खोंदि डारहीं।' कवि० ५.१५ रौताई : (दे० राउत) सं०स्त्री० (सं० राजपुत्रता>प्रा० राउत्ताया)। रजपूती, वीरता । 'होइ कि खेम कुसल रीताई ।' मा०२.३५.६ रौरव : सं०० (सं.)। (१) अत्यन्त भयानक । (२) नरकविशेष। मा० ७.१०७.५ रौरिहि : (दे० रावरी) । आपकी ही। 'करहिं छोहु सब रोरिहि नाई।' मा० २.२.४ रोरें : (दे० रउरे) । आपके.. में । 'हित सबही कर रौरें हाथा।' मा० २.२६०.६ रोरेहि : (दे० रउरे)। आपको, आपके विषय में । 'जो सोचइ ससिकलहि सो सोचइ रोरेहि ।' पा०म० ५५ लंगर : लंगूर । 'दहँ दिसि लंगूर बिराज ।' मा० ६.१०१.८ लंगल : लंगर । कवि० ५.७ लंध्यो : लोध्यों । गी० ६.११.५ लंक : (१) लंका। मा० २.८१.४ (२) सं०स्त्री० (सं० लङका)। कटि भाग । ___'लंक मृगपति ठवनि ।' गी० ७.५.२ लंकपति : लंकापति । मा० ४.५०.५ लंका : लंका नगरी में । 'कहत राम जसु लंका आए।' मा० ५.५३.२ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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