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तुलसी शब्द-कोश
रोपि, पी : पू० । रोप कर, स्थापित कर । 'नाथ कहउँ पद रोपि ।' मा० ७.७१
'भुजा उठाइ कहउँ पन रोपी।' मा० २.२६६.७ रोपे : भूकृ००ब० । लगाये, स्थापित किये। 'रोपे बकुल कदंब तमाला ।' मा०
१.३४४.७ रोप्यो : भूकृ.पु०कए० । रोपा, स्थिर जमाया। 'अति कोप सों रोप्यो है पाउ
सभाँ।' कवि० ६.१५ रोम : सं०० (सं० रोमन्) । (१) रोया, अंगों में उगने वाले छोटे बाल । मा०.
१.१६२.३ (२) ऊन । ‘रोम पाट पट अगनित जाती।' मा० २.६.३ रोमराजि, जी : सं० स्त्री० (सं.)। रोम-पङि क्त । गी० ७.१७.६ रोमांच : सं०० (सं.)। पुलक =रोंगटे खड़े होने की दशा । विन० २६.५ रोमावलि, लो : रोमराजी (सं.)। मा० १.१०४.२ रोयो : भूकृ००कए । रोया, रोदन किया। 'मैं जग जनमि जनमि दुख रोयो।"
विन० २४५.१ रोर : सं०पु० (सं० रोरव)। कोलाहल, चिल्लाहट । 'कुलिस कठोर तनु जोर पर
रोर रन ।' हनु० १० "रोव रोवइ, ई : आ०ए० (सं० रोदित>प्रा० रोवइ)। रोता-ती है । 'रोवइ
बाल अधीर ।' मा० ७.७४ 'सीस धुनि धुनि रोवई ।' विन० १३६.३ रोवत : (१) वकृ.पु. । रोता-रोते। 'पालने झलावतह रोवत राम मेरो।' गी०
१.१२.१ (२) रोते हुए । 'रोवत करहिं प्रताप बखाना।' मा० ६.१०४.४ रोवति : वकृ०स्त्री० । रोती। रा०प्र० ३.२.२ रोवनि : सं०स्त्री० । रोदन, रोने की क्रिया। गी० १.२१.१ रोवनिहारा : वि.पु । रोने वाला। ‘रहा न कोउ कुल रोवनिहारा ।' मा०.
६.१०४.१० रोवहिं : आ०प्रब० (अ०) । रोते हैं, रोती हैं । 'रोवहिं रानी ।' मा० २.१३३.७ रोवा : रोवइ । रोया जाय (रोती हो)। 'जीवन नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा ।'
मा० ४.११.५ रोवाइ : पूकृ० (सं० रोदयित्वा>प्रा० रोवाविअ>अ० रोवावि)। रुलाकर ।
'कबहुंक बाल रोवाइ पानि गहि मिस करि उठि उठि धावहिं ।' कृ० ४ रोष : सं०० (सं.)। क्रोध । मा० १.४.५ रोषा : रोष । मा० १.१२७.१ ।। रोषि : पूकृ० । क्रुद्ध होकर । 'रोषि बानु काढ्यो।' कवि० ६.२२ रोषिहैं : आ०भ०प्रब । क्रुद्ध होंगे। को कुंभकर्नु कीट जब राम रन रोषि हैं।" __ कवि० ६.२ रोषु, ष : रोष+कए । मा० १.४६.८; २८१.५
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