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तुलसी शब्द-कोश
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परिहि : आ०भ०प्रए० (सं० पतिष्यति>प्रा० पडिहिइ) । पड़ेगा। 'समुझि परिहि
सोउ आजु बिसेषी।' मा० २.२२६.४ परिहैं : परिहहिं । 'हाड़ पर परिहैं पुहुमी नीर ।' दो० ३०१ परिहै : (१) परिहि । 'जब मन फिरि परिहै।' विन० २६८.१ (२) मए० (सं०
पतिष्यसि>प्रा० पडिहिसि>अ० पडिहिहि)। तू पड़ेगा। 'नाहि त भव बेगारि
मह परिहै ।' विन० १८६.१ परी : भूक ०स्त्री०ब० । पड़ी, जा पड़ीं। 'परी बधिक बस मनहुं मराली ।' मा०
२.२४६.५ परी : भूक०स्त्री० । पड़ी, पड़ी हुई। 'मुरुछित अवनि परी।' मा० २.१६४.१
(२) आई, प्राप्त हुई । 'परी न राजहि नीद निसि ।' मा० २.३८ (३) घटित हुई । 'उपजि परी ममता मन मोरें।' मा० १.१६४.४ (४) घटित हुई (होनी)। 'तुलसी परी न चाहिऐ चतर चातकहि चूक ।' दो० २८२ (५) हो सकी, जा सकी। 'समुझि परी कछु म ति अनुसारा।' मा० १.३१.१ (६) आ पड़ी, टूट पड़ी । परी जासु फल बिपति घनेरी' मा० १.४५८ (७) बन पडी । 'परी हस्त असि रेख ।' मा० १.६७ (८) प्रणत हुई। 'अस कहि परी धरनि धरि
सीसा।' मा० १.७१.७ परीगो : पड़ गया । 'परीगो काल फग में ।' कवि० ७.७६ परीछा : परिच्छा । मा० २.१५.६ परीछित : परिच्छित । राजा परीक्षित् । कवि० ७.१८१ परुष : वि० (सं.) । कठोर, कर्कश, निष्ठुर, क्रूर, उग्र। मा० ३.३८ ख परुषपन : (दे० पन) । परुषता, कठोर व्यवहार । 'प्रेम न परखिअ परुषपन ।' दो.
२६८ परुषा : परुष+स्त्री० । कठोर, उग्र । 'परुषा बरषा..... सहि के।' कवि० ७.३३ परुषाच्छर : सं०० (सं० परुषाक्षर)। परुष वचन । 'इरिषा परुषाच्छर लोलुपता।'
मा० ७.१०२.४ परसन : भकृ० अव्यय (सं० परिवेषयितुम्>प्रा. परिवेसिउ>अ० परिवेसण) ।
परोसने, भोज्य-सामग्री देने (परिवेषण करने) । 'परुसन लगे सुआर सुजाना।'
मा० १.३२६.३ परसहु : आ.मब० (सं० परिवेषयत>प्रा० परिवेसह >अ० परिवेसहु)। परोसो,
भोजन सामग्री विभक्त करो। 'तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई।' मा०
१.१६८.५ परुसि : प्रकृ० (सं० परिवेष्य>प्रा० परिवेसिअ>अ० परिवेसि)। परोसने का कार्य
सम्पन्न कर । 'छिन महं सबके परुसि गे।' मा०१.३२८ 'पेखत परुसि धरो।' विन० २२६.३
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