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तुलसी शब्द-कोश
परिहरत : वकृ.पु । छोड़ता। 'तुलसी मन परिहरत नहिं, पुरबिनिआ की बानि ।'
दो० १३ परिहरते : क्रियाति.पुब० । त्याग देते, छोड़ सकते। 'ती कि जानकिहि जानि
जिय परिहरते रघुराउ।' दो० ४६३ परिहरहि, ही : आप्रब० (सं० परिहरन्ति>प्रा० परिहरहिं)। छोड़ते हैं, छोड़ ___ सकते हैं। पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं।' मा० १.४.७ परिहरहु, हू : आ०मब० । छोड़ दो । 'प्रिया सोचु परिहरहु सबु ।' मा० १.७१ परिहरि : पू० । छोड़कर । 'हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं।' मा० १.७५.३ परिहरिअ : आ०कवा०प्रए । छोड़ा जाय । ‘सोच परिहरिअ तात ।' मा० २.४५ परिहरिय : परिहरिअ । जा०म० ७६ परिहरिये : परिहरिय । छोड़िये । विन० १८६.२ परिहरिहि : आ०भ०प्रए० (सं० परिहरिष्यति>प्रा० परिहरिहिइ)। छोड़ेगा-गी।
'सीय कि पिय संगु परिहरिहि ।' मा० २.४६ परिहरिहै : परिहरिहि । 'मन..... कलि कुचालि परिहरिहै ।' विन० २६८.३ परिहरी : भूकृ०स्त्री०ब० । छोड़ दीं। 'नर नारिन्ह परिहरी निमेषं।' मा०
१.२४६.१ परिहरी : भूकृ०स्त्री० । छोड़ दी । 'झूठे अघ सिय परिहरी ।' दो० १६६ परिहरु : आ०- आज्ञा-मए० (अ०) । तू छोड़ दे। 'परिहरु दुसह कलेस सब।"
मा० १.७४ परिहरें: छोडने से । 'रामहि परिहरें निपट हानि ।' दो० ६६ परिहरे : भूकृ००ब० । छोड़ दिये । 'पुनि परिहरे सुखानेउ परना।' मा० १.७४.७, परिहरेउ : आ०-भूक पु+उए० । मैंने छोड़ा। 'सिसुपन तें परिहरेउँ न सँगू।'
मा० २.२६०.७ परिहरेउ, ऊ : भूकृ००कए० । छोड़ दिया। 'प्रिय तन तृन इव परिहरेउ ।' मा०.
परिहरेहि : छोड़ने में ही । 'अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई।' मा० ४.७.८ परिहर : परिहरइ । छोड़े। 'मनु परिहरै चरन जनि भोरें। मा० १.३४२.५ परिहर्यो : परिहरेउ । छोड़ दिया । “उदर सुख त परिहर्यो।' विन० १३६.२ परिहहिं : आ०भ० प्रब० (सं० पतिष्यन्ति>प्रा० पडिहिति>अ० पडिहिहिं)।
पड़ेगे, गिरेंगे । 'परिहहिं धरनि राम सर लागें ।' मा० ६.२७.४ परिहास : सं०० (सं०) । विनोद, हँसी, मजाक (स्त्री० प्रयोग भी द्रष्टव्य है)। ____ 'जौं परिहास कीन्हि कछु होई ।' मा० २.५०.६ परिहासा : परिहास । 'सुनि तव भगिनि करहिं परिहासा ।' मा० ३.२२.१०
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