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तुलसी शब्द-कोश
रावरेई : आपके ही । 'आगम निगम कहैं रावरेई गुन ग्राम।' विन० ७७.३ रावरेऊ : आप भी। 'रावरेऊ जानि जिय कीजिए ज अपने ।' कवि० ७.७८ रावरो: रावर+कए० (दे० राउर) । आपका । 'सीलु सनेहु जानत रावरो।'
मा० १.२३६ छं. 'रावरोई : आपका ही। 'रावरो भरोसो तुलसी के रावरोई बल ।' हनु० २१ रास : सं०० (सं.)। (१) कोलाहल, शब्द । (२) नत्यविशेष (जो कृष्ण ने
गोपियों के साथ रचाया था); रासलीला। 'ब्रज बसि रास बिलास, मधुपरी
चेरी सों रति मानी।' क० ४७ रासम : सं०० (सं.)। गधा । मा० ३.२६.५ रासमी : संस्त्री. (सं०) । गधी। 'बेचिए बिबुध-धेनु रासभी बेसाहिए।' कवि०
७.७६ रासि, सी : संस्त्री० (सं० राशि>प्रा० रासि, रासी)। ढेरी, पुज। मा०
३.२२ ६ 'सिव भगवान ग्यान गुन रासी।' मा० १.४६.३।। रासिन्ह : रासि+संब० । राशियों, ढेरों । 'जनु अंगार रासिन्ह पर ।' मा० ६.५३ राहु, हू : सं०० (सं.)। (१) पृथ्वी की छाया जो अष्टमग्रह के रूप में मान्य
है और ग्रहण का कारण है । (२) पुराणों में एक असुर जिसे समन्दमन्थन में अमृत-पान करते हुए विष्णु ने सुदर्शन चक्र से काट दिया तो सिर भाग राहु और
धड़ केतु बन गये । मा० १.७० राहू : राहु । मा० १.७.६ राहुमातु : राहु की माता=सिंहिका (राक्षसी) । हनु० २१ रिगु : सं०० (सं० ऋग्-स्त्री०)। ऋग्वेद । विन० १५५.२ रिच्छ : सं०० (सं० ऋक्ष)। भालू । गी० ६.१६.३ ।। रिच्छेस : (सं० ऋक्षेश) । भालुओं के राजा =जाम्बवान् । मा० ६.३६.३ रिछेसा : रिच्छेस । मा० ४.२६.७ रिझये : भूक००ब० । रिझाये हुए, आसक्त । 'खेलन लगे खेल रिझये री।' गी०
१.४५.२ रिझयो : भूकृ००कए। रिझाया, तल्लीन किया। 'कलगान तान दिनमनि
रिझयो री।' गी० ७.७.२ रिझव : आ०प्रए० (रीझ+प्रेरणा)। रिझाता-ती है, अनुरक्त करता-ती है; ___अनुकूल करता-ती है । 'सो कमला. रिझर्व सुरमौरहि ।' कवि० ७.२६ रिझाइ : पूकृ० । रिझा कर, फुसला कर । 'बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि
कुल खीस ।' मा० ५.५६ रिझाइबो : भकृ.पु०कए । रिझाना, अनुकूल बनाना । 'तुलसी लोग रिमा इबो
करषि कातिबो नान्ह ।' दो० ४६२
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