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तुलसी शब्द कोश
भिन्न वस्तु तत्त्व । 'नीति प्रीति परमारथ स्वारथु ।' मा० २.२५४.५ (५) परम
पुरुषार्थ =मोक्ष+ भक्ति । 'चहत सकल परमारथ बादी ।' मा० ३.६.५ परमारथवादी : वि०० (सं० परमार्थवादिन्) । ब्रह्मवादी, सत्य तत्त्व को ही
सिद्धान्त रूप में मानने वाला । मा० १.१०८.५ परमारथमई : वि०स्त्री० (सं० परमार्थमयी)। ब्रह्म स्वरूप। परम सत्यरूप । 'मूरति
मनोहर चारि बिरचि बिरंचि परमारथमई ।' गी० १.५.३ परमारथी: वि० (सं० परमाथिन्) । परमार्थ तत्त्व (ब्रह्म) का ज्ञाता, सत्य का
द्रष्टा=मुक्त । ‘परमारथी प्रपंच बियोगी।' मा० २.६३.३ परमारथु : परमारथ+कए । (१) एकमात्र सत्य, परम पुरुषार्थ । 'सखा परम
पुरुषारथ एहू ।' मा० २.६३.६ (२) निरपेक्ष तत्त्व, ब्रह्म । 'जनु जोगी परमारथ
पावा।' मा० २.२३६.३ परमिति : सं० स्त्री० (सं.)। (पर+मिति) चरम सीमा, अन्तिम छोर । 'रघुपति
भगति प्रेम परमित सी।' मा० १.३१.१४ परमोसा : (सं० परमेश; परमीश=परम्+ईश>प्रा० परमीस) परमेश्वर । ___ 'माया मोह पार पर मीसा ।' मा० ७.५८.७ परमेस्वर : (सं० परमेश्वर) परमात्मा । अखिल विश्व पर स्वतन्त्र प्रभु।' दो०
परमेस्वरु : परमेस्वर+कए० । अद्वैत ब्रह्म। 'पाहन तें परमेस्वर काढ़े।' कवि०
७.१२७ परलोक, का : (इहलोक का विलोम) वर्तमान जीवन से परे लोक = आमुष्तिक
गति । मा० १.२०.२ परलोकु, कू : परलोक+कए । 'सुकृतु सुजसु परलोकु नसाऊ ।' मा० २.७६.४ परवान, ना : (१) प्रमान । प्रमाणित, सिद्ध, सत्य । कियो प्रेम परवान ।' गी०
२.५९.४ (२) स०प० (सं० परिमाण =प्रमाण>अ० परिवाण)। पर्यन्त ।
'रखिहउँ इहाँ बरष परवाना।' मा० १.१६९.५ परवाह : सं०स्त्री० (फा० परवा खौफ, दहशत)। (अपेक्षा) आशङ का, डर,
सोच । 'परवाह है ताहि कहा नर की।' कवि० ७.२७ परशु : सं०पु० (सं०) । कुल्हाड़ा। विन० ५२.६ परस : (१) परसइ । छूता है, छु सकता है। ‘तन बिनु परस नयन बिनु देखा।'
मा० १.११८.७ (२) सं०पू० (सं० परश)। पारस पत्थर, जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाने की किंवदन्ती है । 'गुजा ग्रहइ परस मनि खोई।' मा० ७.४४.३ (३) सं० (सं० स्पर्श>प्रा० फरिस) । छुवन, छूना । पारस परस कुधातु सुहाई ।' मा० १.३.६ (४) वायु का असाधारण गुण । 'परस कि
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