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तुलसी शब्द-कोश
573.
परमात : प्रभात । मा० २.१८६.१ परम : (१) वि० (सं०) । अन्तिम, सर्वोपरि, श्रेष्ठ । 'परम धरम यह नाथ
हमारा ।' मा० १.७७.२ (२) संपु । रहस्य, मर्म । 'परम तुम्हार राम कर जानिहि।' मा० २.१७५.७ (३) क्रि०वि० । अतिशय । 'परम सुभट रजनीचर
भारी।' मा० ५.१७.८ परमतत्त्व : ब्रह्म । 'पावा परम तत्त्व जनु जोगीं।' मा० १.३५०.६ परमपद : परम धाम, चरम साध्य, सर्वोत्तम लक्ष्य, परम पुरुषार्थ =मोक्ष । 'कासीं
मरत परम पद लहहीं।' मा० १.४६.४ परमफल : (दे० फलु) (१) एकमात्र परम पुरुषार्थ । “इहै परम फलु इहै बड़ाई।'
विन० ६२.१ (२) सबसे बड़ी उपलब्धि । 'मन इतनोइ या तनु को परमफलु ।'
मा० ६३.१ परमाणु, नु : सं०० (सं०) । (१) न्याय के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज और वायु
के सूक्ष्मतम कण जो नित्य माने गये हैं। (२) सांख्य में पञ्चतन्मात्ररुपतन्मात्र=सूक्ष्म तेज; स्पर्शतन्मात्र=सूक्ष्म वायु; रसतन्मात्र=सूक्ष्म जल; गन्धतन्मात्र=सूक्ष्म पृथ्वी और शब्दतन्मात्र= सूक्ष्म आकाश । ये ही पांच ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं और इन्हीं से महाभूतों की सृष्टि परिणत होती है।
विन० ५४.२ परमातमा : परमात्मा । मा० १.११६.५ परमातुर : अत्यन्त आतुर, अत्यधिक हड़बड़ी से बिकल, अतिशीघ्रगामी । परमातुर
बिहंगपति आयउ ।' मा० ७.६० परमात्मा : सं०० (सं.)। परम तत्त्व, सर्वोपरि आत्मतत्त्व, परमेश्वर= ब्रह्म ।
'भव कि परहिं परमात्मा बिंदक ।' मा० ७ ११२.५ परमानंद : (१) अत्यन्त आनन्दमय जिसमें सर्वोपरि सुख हो, आत्यन्तिक आनन्द
मय = ब्रह्म (वल्याण गुण सम्पन्न ) । 'परमानंद परेस पुराना।' मा० १.११६.८
(२) आत्यन्तिक सुख । 'परमानंद सुर मुनि पावहीं।' मा० ७.१२.१ परमानंदा : परमानंद । मा० १.१८६ छं० परमानु : परमाणु । मा० ६.०.१ परमायतन : (परम+आयतन) अन्तिम आश्रय, चरम अधिष्ठान, परधाम : मा०
७.१४.१० परमारथ : सं००+वि० (सं० परमार्थ) । (१) सत्य, यथार्थ । 'सपनेहुं प्रभ
परमारथ नाहीं ।' मा० ७.४७.६ (२) प्रातिभासिक तथा व्यावहारिक प्रत्ययों से पृथक् वस्तु सत्य । 'मायाकृत परमारथ नाहीं।' मा० ४७.१८ (३) सर्वोपरि सत्य तत्त्व= परब्रह्म । 'परमारथ पथ परम सुजाना।' मा० २ ६३.७ (४) स्वार्थ
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