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तुलसी शब्द-कोश
भवनि : सं०स्त्री० (सं० भ्रमण>प्रा. भमण>अ० भव॑ण) । विचरण, भ्रमण किया,
घूमघाम, भटकना । 'थकित बिसारि जहां तहां की भवनि ।' गी. ३.५.४ भंवर, रा : (१) सं०० (सं० भ्रमर>प्रा० भमर>अ० भवेर)। भौंरा,
चञ्चरीक । बर० ३२ (२) आर्वत, चक्करदार प्रवाह । 'भंवर बर बिभंगतर तरंगमालिका ।' विन० १७.२ (३) चरखी, चकरी । 'मरकत भँवर, डांड़ी कनक ।' गी० ७.१६.३ (४) (सं० घ्रामर)। घुमाव, घुमावदार गति (युद्ध आदि में बाँए से दौए को बाण आदि चलाने की चाल) । 'धारै बान, कूल धन; भूषन जलचर, भवर सुभग सब घाहैं ।' गी० ७.१३.३ (दक्षिणावर्त गतिरूपी
आवर्त)। भंवरा : भवर । चकरी। गी० ७.१८.२ भंग : सं०पु० (सं०) । (१) टूटना, उच्छेद । 'चोंच भंग दुख तिन्हहि न सूझा ।'
मा० ६.४०.१० (२) बिघ्न, बाधा। दे० रसभंग। (३) (समासान्त में)
भंजन । तोड़ने वाला । 'सुग्रीव दुखरासि-भंग।' विन० ५०.६ भंगकर : वि.पु. (सं०) । तोड़ने वाला, विनाशकारी । विन० ४६.६ भंगकृत : भंगकर (सं० भङ्गकृत्) । विन० ६०.४ भंगा : भंग । टूटना । मा० १.२६८.२ भंगू : भंग+कए । (१) त्रुटि, टूटन । 'कबहुं न कीन्ह मोर मन भंग ।' मा०
२.२६०.७ (२) बाधा । 'जेहि बिधि राम राज रस भंगू।' मा० २.२२२.७ भंजन : (१) सं०० (सं०) । खण्डन । 'नाहिं त करि मुख भंजन तोरा।' मा०
६.३०.५ (२) वि०पु । खण्डनकारी। 'भगत बिपति भंजन सुखदायक ।'
मा० १.१८.१० भंजनि : वि०स्त्री० । भङ्ग करने वाली । 'भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि ।' मा०
१.३१.८ भंजनिहारा : वि.पु । तोड़ने वाला । मा० १.२७१.१ भंजनिहारु : वि०पु०कए । तोड़ने वाला, विनाशक । 'मनसिज मान भंजनिहारु।'
गी० ७.८.१ भंजब : भकृ.पु । तोड़ना (होगा), (तोड़ेगा)। 'भंजब धनुषु राम सुन रानी।'
मा० १.२५७.२ भंजहु : आ.मब० । तोड़ो। 'उठहु राम भंजहु भव चापा।' मा० १.२५४.६ भंजा : भूकृ०० । तोड़ा। हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा।' मा० ५.२१.८ भंजि : पूक० । तोड़ कर । 'भंजि धनुष जानकी बिआही।' मा० ६.३६.११ भंजिहि : आ०भ०प्रए । तोड़ेगा। नष्ट करेगा। 'प्रभु मंजिहि दारुन बिपति ।'
मा०१.१८४ भंजिहैं : आ० भ०प्रब० । तोड़ेंगे : 'प्रभु भंजिहैं संभु धनु ।' गी० १.७७.३
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