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तुलसी शब्द-कोश
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ब्रह्मांड : सं०० (सं०) । अण्डाकार विश्व (पुराणों के अनुसार पहले स्वर्ण अण्ड ___ उत्पन्न हुआ जिसके कटाहाकार दो जो 'अण्डकटाह' कहे गये हैं-इस कटाह
युगल को 'ब्रह्माण्ड' कहा जाता है) । विराट् जगत् । मा० ७.८० ख ब्रह्मांड : ब्रह्मांड+कए० । एकीभूत सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड । 'बोले बचन चरन चापि
ब्रह्मांडु ।' मा० १.२५६ ब्रह्मा : सं०० (सं०) । माया के रजोगुण से युक्त परब्रह्म का सृष्टिकर्ता रूप =
विधाता । मा० ७.११ ग ब्रह्मानंद : ब्रह्मसुख । मा० ७.१५ ब्रह्मानंद : ब्रह्मानंद+कए । एकमात्र ब्रह्मलीनता का परमानन्द । 'ब्रह्मानंदु
लोग सब लहहीं।' मा० १.३०६.८ ब्रह्मानी : सं०स्त्री० (सं० ब्रह्माणी)। ब्रह्मा की पत्नी = सरस्वती। मा०
१.१४८.३ ब्रह्म : ब्रह्म+कए० । अद्वितीय परमतत्त्व । मा० १.३४१.६ ब्रह्मद्र : ब्रह्मा और इन्द्र । विन० १०.६ बात, ता : व्रात । समूह । मा० ७.१०१ छं० 'जनरंजन भंजन खल ब्राता।' मा०
५.३६.४ ब्राह्मन : सं०० (सं० ब्राह्मण) । वर्गों में प्रथम विप्र । कवि० ७.१०२ जीड़ा : सं०स्त्री० (सं० व्रीडा) । लज्जा । मा० ७.५८.३
भंडार : सं०० (सं० भाण्डागार>प्रा० भंडार)। सामग्री रखने का घर । कवि०
भंडारू : भंडार+कए। संग्रहालय । 'चारि पदारथ भरा भंडारू ।' मा०
२.१०५.४ भंड आ : सं०पु० (सं० भण्ड, भाण्डिक) (१) एक संकरवर्ण जाति (२) वेश्याओं
का दलाल =भिरसिकार । (३) नाई। 'प्रभु प्रिय भंड आ भण्ड ।' दो० ५४६ भंभेरि : (१) सं०स्त्री० (सं० मेढ़, भेड़)। भेड़ियाधसान, अविवेक (?)।
(२) (भम्भर=टिड्डी) । टिड्डीदल के समान समूह-गति । 'गुन ग्यान गुमान भैभरि बड़ी, कलपद्रुम काटत मूसर को।' कवि० ७.१०३
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