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तुलसी शब्द-कोश
ब्रह्मज्ञानी : वेद तथा परमात्मा का ज्ञाता । विन० ५७.४ ब्रह्मण्य : वि० (सं०)। (१) ब्राह्मण-रक्षक । (२) ब्रह्मज्ञानी । 'ब्रह्मण्यजन प्रिय
मुरारी।' विन० ५३.५ ब्रह्मधाम : ब्रह्मलोक+विधाता का घर । मा० ३.२.४ ब्रह्मन्य : ब्रह्मण्य । 'प्रभु ब्रह्मन्य देव मैं जाना ।' मा० १.२०६.४ ब्रह्मपर : वि० (सं०) । (१) ब्रह्मपरायण, ब्रह्मलीन । 'जीवनमुक्त ब्रह्मपर ।' मा०
७.४२ ब्रह्मपुर : ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी का नगर । मा० ४.४६ छं. ब्रह्मबान : ब्रह्ममन्त्र से अभिमन्त्रित बाण =ब्रह्मास्त्र । मा० ५.२०.१ ब्रह्मबानी : ब्रह्मगिरा । 'गगन ब्रह्मबानी सुनि काना।' मा० १.१८७.८ ब्रह्मबिचारू : (दे० बिचारु) परमतत्त्व विषयक चिन्तन, उपनिषदों का मनन,
स्वाध्याय । मा० १.१७८.४ ब्रह्मविद : (दे० बिद) ब्रह्मज्ञानी । विन० ५६.३ ब्रह्मभवन : ब्रह्मधाम । मा० १.७१.१ ब्रह्ममंडली : ब्राह्मणसमूह । गी० ७.३.२ ब्रह्ममय : वि० (सं.)। (१) ब्रह्मतत्त्व की भावना से सम्पन्न, ब्रह्मरूप । 'मुदित
ब्रह्ममय बारि निहारी।' मा० १.१६७.५ (२) ब्रह्मरूप उपादान से रचित+ ब्रह्म से अभिन्न । 'देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे।' मा०
१.८५ छं० ब्रह्मलोक : आठ स्वर्गों (ब्राह्म, प्राजापत्य, सौम्य, ऐन्द्र, गान्धर्व, याक्ष, राक्षस और
पैशाच) में सर्वोपरि लोक जहां त्रिदेव श्रेष्ठ ब्रह्मा का निवास कहा गया है।
मा० १.४२.५ ब्रह्मवादी : वि०० (सं० ब्रह्मवादिन्) । ब्रह्म को ही सत्य तत्त्व मानने के सिद्धान्त
वाला। विन० २६.८ ब्रह्मसमा : ब्रह्मा जी की सभा में। 'ब्रह्मसभां हम सन दुख माना।' मा०
१.६२.३ ब्रह्मसर : (सं० ब्रह्मशर) ब्रह्मबान । मा० ५.१६ ब्रह्मसुख : ब्रह्मलीन दशा का आनन्द; समाधिस्थ योगी का साक्षात्कार-सुख ।
मा० १.२६.२ ब्रह्मसुखु : ब्रह्मसुख+कए । एकमात्र ब्रह्मानन्द । 'अगम जिमि ब्रह्मसुख अह मम
मलिन जनेषु ।' मा० २.२२५ ब्रह्मसृष्टि : (सं०) ब्रह्मा की रचना=जगत्प्रपञ्च । मा० १.१८२.१२ ब्रह्मा : ब्रह्मा जी से । 'मैं ब्रह्मां मिलि तोहि बर दीन्हा ।' मा० १.१७७.५
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