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तुलसी शब्द-कोश
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करने की क्रिया। 'अब देह भई पट नेह के घाले सों, ब्योंत कर बिरहा दरजी।'
कवि० ७.१३३ ब्रज : सं०० (सं० व्रज)। (१) समूह, गोसमूह (२) गोष्ठ, गायों के रहने का
घेरा । दे० ब्रजवधू । (३) गोचरभूमि, ग्वालों की बस्ती। (४) मथुरा के
आस-पास का प्रदेश । कवि० ७.१३४ ब्रजबषू : गायों के गोष्ठों में रहने वाली स्त्री= अहीरन । गी० १.५४.५ ब्रजबासिन्ह : व्रजवासियों (ने) । क० ५० ब्रजराजकुमार : श्रीकृष्ण । कवि० ७.१३३ ब्रत : सं०पु० (सं० व्रत)। (१) प्रतिज्ञा, संकल्प, दृढ निश्चय (२) निष्ठा
(३) उपवास, उपासना, धार्मिक अनुष्ठान (४) विधान, विहित कर्म । 'जासु
नेम ब्रत जाइ न बरना।' मा० १.१७.३ व्रतधारी : वि०पू० (सं० व्रतधारिन्) । दृढ निष्ठा वाला। मा० १.१०४.७ ।। अतबंध : सं०० (सं० व्रतबन्ध)। यज्ञोपवीत संस्कार=उपनयन+वेदारम्भ+
समावर्तन । रा०प्र० ४.३.४ ब्रतु : ब्रत+कए । अनन्य व्रत । 'मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू ।' मा० १.५६.८ ब्रन : सं०पू० (सं० वण) । मत, घाव, फोड़ा आदि । मा० ७.७४.८ ब्रह्म : सं०० (सं० ब्रह्मन्)। (१) परतत्त्व, परमात्मा। 'व्यापकु एकु ब्रह्म
अबिनासी।' मा० १.२३.६ (२) त्रिदेव में अन्यतम =सृष्टिकर्ता विरञ्चि । 'ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए।' मा० १.८८.४ (३) ब्राह्मणों के पूर्वज जिनकी सन्तति होने से 'ब्राह्मण' कहा जाता है। 'चल न ब्रह्म-कुल सन बरिआई।'
मा० १.१६५.५ (४) वेद (५) ज्ञान (६) शक्ति (७) धार्मिक अनुष्ठान । ब्रह्म, डा : ब्रह्माण्ड । मा० १.२०१; ६.१०३.१० ब्रह्मकर्म : वैदिक कर्मकाण्ड (ब्रह्म-वेद) । विन० ५३.५ ब्रह्मकल : ब्राह्मण वंश । मा० ३.३३.८ ब्रह्मगिरा : ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न वाणी (शब्द ब्रह्म); आकाशवाणी । 'ब्रह्मगिरा
भै गगन गभीरा।' मा० १.७४.८ ब्रह्मग्यान : परमतत्त्व का साक्षात्कार । मा० ७.१११.२ ब्रह्मचरज : ब्रह्मचर्ज । आत्मसंयम, वीर्यरक्षा का नियम । मा० १.१२६.२ ब्रह्मचर्ज : (१) सं०० (सं० ब्रह्मचर्य)। आश्रमचतुष्टय का प्रथम आश्रम ।
(२) वीर्य रक्षा का नियम । मा० १.८४.७ ।। ब्रह्मचारी : वि०० (सं० ब्रह्मचारिन्)। (१) ब्रह्मचर्याश्रमी (२) वेदों का
स्वाध्यायी, ज्ञानी (३) परमतत्त्व का साक्षात्कर्ता । 'नारद प्रमुख ब्रह्मचारी।' विन० ११.६ (४) संयमी।
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