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तुलसी शब्द-कोश बटोर्यो : भूकृ००कए० । समेटा, इकट्ठा किया। 'नृप कटक बटोर्यो ।' गी०
१.१०२.५ बटोही : बटोही ने । 'लिए चोरि चित राम बटोहीं।' मा० २.१२३.८ बटोही : बटाऊ (सं० वर्म-पथिक>प्रा० वट्ट-वहिन)। गी० २.१८.१ बड़ : वि०० (सं० बृहत्>प्रा० बड्डु)। बड़ा, विशाल, महत् । 'भागु छोट
अभिलाष बड़ा।' मा० १.८ बड़प्पनु : सं०पु०कए० (सं० बृहत्त्वम् >प्रा. बड्डुत्तणं>अ० बड्डप्पणु)। बड़ाई,
महत्त्व । केहिं न सुसंग बड़प्पन पावा।' मा० १.१०.८ बड़भाग : (१) सं० । उच्चभाग। (२) वि०० । उच्च भाग्यशाली ।
रा०न० १३ बड़भागिनि : वि०स्त्री० । अति भाग्यशालिनी । मा० २.२१४.१ बड़भागी : वि०स्त्री०ब० । बड़भागिनियां, भाग्यवतियां । 'चलीं गावत बड़भागीं।'
गी० १.६.१२ बड़भागी : (१) बड़भाग+स्त्री० । अति भाग्यवती । 'अतिसय बड़भागी चरनन्हि
लागी।' मा० १.२११ छं० (२) वि.पु । अति भाग्यवान् । 'सुनु जननी सोइ
सुतु बड़भागी।' मा० २.४१.७ बड़री : वि०स्त्री० (सं० बृहत्तरा>प्रा० बड्डअरी) । अधिक बड़ी । 'बिकटी भृकुटी
बड़री अखियां ।' कवि० २.१३ बड़वागि : बड़वानल (सं० वडवाग्नि>प्रा० वडवग्गि)। कवि० ७.६६ बड़वानल : सं०पु० (सं० वडवानल । समुद्र की आग । मा० ५.३३ बड़ाइ : बड़ाई। मा० १.३२६ छं० १ बढ़ाई : बड़ाई से । 'जो बड़ होत सो राम बड़ाई।' मा० २.१९६.८ बड़ाई : सं-स्त्री०=बड़प्पन । (१) महत्ता। 'कहाँ कहाँ लगि नाम बड़ाई।' मा०
१.२६.८ (२) यश । 'ईसु काहि धौं देइ बड़ाई।' मा० १.२४०.१
(३) प्रशस्ति । 'करि पूजा मान्यता बड़ाई।' मा० १.३०६.४ बड़ि : बड़ी। एक लालसा बडि उर माहीं ।' मा० १.१४६.३ बड़िए : बड़ी ही । 'तेरी बड़िए बड़ाई है ।' गी० ५.२६.२ बड़ी : बड़+स्त्री० (प्रा० बड्डी) । महती। मा० १.१३१.१ बड़ें : (१) बड़े से । 'बड़ें भाग देखेउँ पद आई।' मा० १.१५६.६ (२) बड़े...
__ में । 'नाम प्रताप बड़ें कुसमाज बजाइ रही पति पांडु बधू की।' कवि० ७.८६ बड़े : (१) बड़ें । बहुत सा । 'व्याह ह्वहै बड़े खाए।' गी० १.६५.१ (बहुत-सा
खाने पर=अधिक बली होने पर)। (२) 'बड़' का रूपान्तर । 'बड़े भाग उर आवइ जासू।' मा० १.१.६
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