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तुलसी शब्द-कोश
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बज्रपात : इन्द्र के आयुध या गाज का गिरना । मा० ६.८७.७ बज्राघात : (वज्र+आघात) । वज्र या बिजली का प्रहार, बिजली गिरने को ___ कड़क । 'गर्जा बज्राघात समाना ।' मा० ६.६४.१ बच : बज्र+कए । 'उतरु देव "हृदय बज्र बैठारि ।' मा० २.१४५ बझाऊ : वि.पु० । उलझाने वाला, फंसाव से युक्त, बाधक । 'काट कुराय लपेटन
लोटन ठावहिं ठाउँ बझाऊ रे ।' विन० १८६.४ बझावौं : आ० उए । बझाता हूं, फंसाता हूं। 'ब्याध ज्यों विषय बिहँगनि बझावौं ।'
विन० २०८.२ बट : (१) सं०पु० (सं० बट) । बरगद वृक्ष । मा० १.५८.७ (२) (सं० वाट=
वर्त्म>प्रा० वट्ट)। मार्ग। 'पाही खेती, बट लगन ।' दो० ४७८ बटत : वक०'० (सं० वटत् = वटयत्-वट वेष्टने>प्रा० वटुंत)। भांजता, लपेट
कर बनाता (रस्सी बटता) । 'बाँधिबे को भव गयंद रेनु की रजु बटत ।'
विन० १२६.३ बटपार, रा : सं०० । मार्ग का लुटेरा, पथिकों को लूटने वाला। दो० ५४६
_ 'मैं एक अमित बटपारा ।' विन० १२५.६ बट-बूट : बरगद का वृक्ष । कवि० ७.१४० बटाऊ : सं० । पान्थ, राहगीर, राह चलन्तू । मा० २.१२४.१ बटु : (१) बट+कए । बरगद । 'परसि अखय बटु हरहि गाता ।' मा०
१ ४४.५ (२) सं०० (सं० वटु)। ब्रह्मचारी बालक । 'बिद किए बटु ।'
मा० २.१०६ 'बटोर बटोरइ : आ०प्रए । समेटता है, समेटे । 'जेहि के भवन विमल चितामनि
सो कत कांच बटोरे।' विन० ११६.४ वेदों में विटारिन्' शब्द दीर्घ एवं चौड़े के अर्थ में आता है। उसके 'बटुर' भाग से हिन्दी की 'बटुरना' क्रिया निष्पन्न है जिसका अर्थ आस-पास से एकत्र होना है। उसी का सकर्मक रूप 'बटोरना'
जान पड़ता है। बटोरत : वकृ०पु । समेटता-समेटते । 'बीजु बटोरत ऊसर को।' कवि० ७.१०३ बटोरा : (१) भूकृ.पु । समेटा, सब ओर से इकट्ठा किया। 'राम भालु कपि
सैन बटोरा।' मा० १.२५.३ (२) बटोरि । समेट कर=संभाल कर । चलहि
न पाउँ बटोरा रे।' विन० १८६.३ बटोरि : प्रकृ० । इकट्ठा करके । 'आए दल बटोरि दोउ भाई ।' मा० २.२२८.६ बटोरी : बटोरि । मा० ५.४८.५ बटोर : बटोरइ।
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