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तुलसी शब्द-कोश
अलीहा : वि० (सं० रेखा>प्रा० लीहा) । रेखा-हीन, निमल, निराधार (रेखा
रहित चित्र के समान व्यर्थ) । मिथ्या, कपोल कल्पित । 'एक कहहिं यह बात
अलीहा ।' मा० २.४८.७ अलुज्झि : पूकृ० । उल झकर, उलझाकर । 'खप्परिन्ह खग्ग अलुज्झि जुज्झहिं ।'
मा० ६.८८ छं० अलेख : (१) वि० (सं०) लेख-रहित या लेखारहित । शून्य, वह जिसका उल्लेख
न हो, अद्भुत । (२) (सं० अलेख्य)। अकथ्य, अनिर्वचीय, उल्लेख के. अयोग्य। (३) सं० पुं० (सं० आलेख)। चित्र । 'भए अलेख सोचबस
लेखा।' २.२६४.८ अलेखी : अलेख । अकथ्य, विचित्र । 'बड़े अलेखी लखि परें ।' विन० १४७.५ अलेप : वि० (सं.)। लेपरहित, निर्लिप्त, अनासक्त, निष्काम, वासनादि मलों से
रहित । 'अगुन अलेप अमान एकरस ।' मा० २.२१९.६ अलोने : वि० ० बहु० (सं० अलवण>प्रा० अलोण)। लवणरहित । 'जस सालन ___साग अलोने ।' विन० १७५.४ प्रलोला : वि० (सं० अलोल)। अचञ्चल, स्थिर, लोभ तथा वासना से रहित
होकर एकाग्र । 'नाथ कृपां मन भयउ अलोला।' मा० ४.७.१५ अलौकिक : (१) (दे० लौकिक) । लौकिक हिताहित से परे, लोकोत्तर । 'अकय
अलौकिक तीरथराऊ ।' मा० १.२.१३ (२) विलक्षण, अद्भुत-जो लोक प्रसिद्ध व्यवहार की व्याख्या में न बंधता हो । 'असि सब भांति अलौकिक करनी।' गी० १.११८.८ (३) लोक में जो अन्यत्र न दिखाई दे। 'जासु
बिलोकी अलौकिक सोभा ।' मा० १.२३१.३ अल्प : वि० (सं०) । तुच्छ, क्षुद्र, छोटा (थोड़ा-सा)। 'रावन नगर अल्प कपि
दहई।' मा० ६.२३.८ अल्पमृत्यु : सं० स्त्री० (सं.)। अल्पायु वाली मृत्यु, अकालमृत्यु [दीर्घायु, मध्यायु
और अल्पायु ये तीन आयुर्दाय होते हैं । ४० वर्ष से कम वय वाली आय अल्पायु • है और उसमें मृत्यु को 'अल्पमृत्यु' कहा जाता है] । मा० ७.२१.५ अवराई : अँबराई । आम्रवण, बगीचा। 'संतसभा चहुँ दिसि अवँराई ।' मा०
१.३७.१२ अवकलत : वकृ० पु । सूझता, विचार में आता, तर्क में बैठता । 'मोहि अवकलत
उपाउ न एक ।' मा० २.२५३.२ अवकास : सं० पु० (सं० अकाश)। रिक्त स्थान, अन्तराल । 'कोउ अवकास कि
नभ बिनु पावइ ।' मा० ७ ६०.३ [दो मुर्त द्रव्यों के बीच का अन्तर अवकाश
है, जिसका कारण अथवा आश्रय आकाश है।] अवकासा : अवकास । 'नभ सत कोटि अमित अवकासा।' मा० ७.६१.८ .