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________________ तुलसी शब्द-कोश 47 अलख : वि० (सं० अलक्ष्य>प्रा० अलक्ख)। जो लक्षित न हो, देखा न जा सके; जिसका लक्षण (स्वरूप) न किया जा सके; अदृश्य, अप्रमेय । 'अबिगत अलख अनादि अनूपा ।' मा० २.६३.७ अलखगति : वि० (सं० अलक्ष्यगति) अदृश्य गति वाला, व्यापक तत्त्व जिसका लक्षण या दर्शन न किया जा सके । अदृश्य होकर चलने वाला। 'की अज अगुन अलखगति कोई ।' मा० १.१०८.८ अलखित : वि० (सं० अलक्षित) अदृश्य, न देखा हुआ, न देखी हुई । 'कबि अलखित गति बेषु बिरागी।' मा० २.११०.८ पलखु : अलख+कए । अदृश्य तत्त्व । 'ब्यापक ब्रह्म अलखु अबिनासी।' मा० १.३४१.६ अलच्छि : सं० स्त्री० (सं० अलक्ष्मी>प्रा० अलच्छी)। निर्धनता, अकिंचनता, दरिद्रता । मा० १.६.७ मलप : वि० (सं० अल्प)। थोड़ा, लेशमात्र, यत्किचित । 'ताते में अति अलप बखाने ।' मा० १.१२.३ अलसात : वकृ० पु । आलस्यपूर्ण शिथिलता की चेष्टाएँ करता-करते । गी० १.१६.४ अलसातो : क्रियाति० पु. एक० । यदि आलस्य करता......। 'जपत जीह रघुनाथ को नाम नहि अलसातो। बाजीगर के सूम ज्यो खल खेह न खातो ॥' विन० १५१.२ अलसी : वि० पुं० । आलसी, अकर्मण्य । कवि० ६.७१ अलरन : सं० पु. (सं० आलान)। हाथी बाँधने का खम्भा या खू टा। मा० २.५१ अलायक : (सं० अ+अरबी-लायक) । नालायक, अयोग्य । विन० १४५.६ अलि, अली : (१) सं० स्त्री० (सं० आली)। सखी, सहेली। 'सिय सहित हिये हरषित अली ।' मा० १.२३६ छं० (२) (सं० आलि)। श्रेणी, पंक्ति, समूह । (३) सं० पु० (सं० अलि)। भ्रमर । 'अलिगन गावत नाचत मोरा।' मा० २.२३६.७ अलिगिनी : अलिनि (संभवतः ‘अलिगण' से बनाया हुआ स्त्री० शब्द)। 'मंद मंद गुंजत हैं अलि अलि गिनी ।' गी० २.४३.३ अलिनि : सं० स्त्री० । भ्रमरी । मा०१.२५६.१ अली : 'अली'+ब० । अलियाँ, सखियाँ । 'प्रेम न जाइ कहि, जानहिं अली ।' ___ मा० १.२३७ छं० ३ अलीक : वि०+सं० (सं.)। मिथ्या, असत्य । मा० ६.२५.८ अलीका : अलीक । मा० २.२१६.६
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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