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तुलसी शब्द-कोश
497 पोखो : धोख+कए। धोखा, भूल भटक, चूक । 'तुलसी प्रभु झूठे जीवन लगि
समय न धोखो लहौं ।' गी० ३.१३.४ घोती : सं०स्त्री० । धौत वस्त्र, स्वच्छ अधोवस्त्र, जो कटि से नीचे पहना जाता है।
श्वेत परिधान विशेष । मा० १.३२७.३ घोबी : सं०० (सं० धावक) । रजक । 'धोबी कैसो कूकरु न घर को न घाट को।'
कवि० ७.६६ धोये : धोए। घोयो : भूक.पु०कए । प्रक्षालित किया। 'चाहत कुटिल मलहि मल धोयो।'
विन० २४५.३ घोरी : (१) सं०स्त्री० (सं० धोरणी)। लगातार श्रेणी, अखण्ड पांत । 'धींग
घरमध्वज धंधक धोरी।' मा० १.१२.४ (दे० द्वितीय अर्थ) । (२) वि.पु. (सं० धौरेय) । धुरीण, भारधारी। 'चलत भगति बल धीरज धोरी।' मा०
२.२३४५ /घोव, धोवइ : (सं० धावति-धावु शुद्धौ>प्रा० धोवइ) आ०प्रए० । धोता है,
प्रक्षालित करती है। रा०न० १४ घोवनि : सं०स्त्री०। धोने की क्रिया (मुखप्रक्षाल आदि)। 'रोवनि धोवनि
अनखानि अनरसनि ।' गी० १.२१.२ घोवावई : आ०प्रब० । धुलाते हैं। 'जो पगु नाउनि धोवइ राम धोवावई हो।'
रा०न० १४ घौं : अव्यय (सं० ध्र वम्>प्रा० धुवं)। (१) निश्चय ही। 'समुझि धौं जिय
भामिनी ।' मा० २.५० छं० (२) भला । (प्रश्न) । 'काहे को करति रोष, देहि धौं कोने को दोष ।' कृ० ३७ (३) संभावना। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई।' मा० १.२४०.१ (४) अथवा । 'की धौं स्रवन सुनेहि नहिं मोही।' मा०
५.२१.२ घौज : सं०स्त्री० (सं० धृञ्ज-वृजि गतो) । दौड़, धावन क्रिया । 'एक करै धौंज, ____एक कहैं काढ़ी सौंज ।' कवि० ५.८ धौर : वि.पु. (सं० धौरेय) । बड़े, भारी भरकम, भारधारी। 'धरनीधर धोर
धकान हले हैं।' कवि० ६.३३ धौरहर : सं०० (सं० धवलगृह>प्रा० धवलहर)। चूने से पुता हुआ विशाल
प्रासाद । 'चढ़ि धौरहर बिलोकि दखिन दिसि ।' गी० ६.१७.१ धौरि : घोरी । श्रेणी। गी० ७.१८.१ घौल : धवल । श्वेत । 'बगरे सुरधेन के धौल कलोरे ।' कवि० ७.१४४