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तुलसी शब्द-कोन
मध्य में आने वाला उपकरण आदि। 'साधनधाम मोच्छ कर द्वारा ।' मा०
७.४३.८ द्वारपाल : सं०० (सं०) । दौवारिक, द्वार-रक्षा में नियुक्त परिचारक । मा०
१.१२२.४ द्वारें : द्वार पर । 'महाभीर भूपति के द्वारें।' मा० १.३०१.३ द्वारे : (१) द्वार+२० । 'हाट बाट चौहट पुर द्वारे ।' मा० १.३४४.४ (२) द्वारें
(सं०) । द्वार पर । 'सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।' मा० ७.६.१ द्वारेहिं : द्वार पर ही । 'द्वारेहि भेंटि भवन लेइ आई।' मा० २.१५६.३ द्विज : सं०पु० (सं.)। (१) उपनयन संस्काररूप द्वितीय जन्म पाने वाला=त्रिवर्ण
=ब्रह्म, क्षत्र, वैश्य । (२) ब्राह्मण । मा० १.१६६.५ (३) पक्षी जो अण्डे से दुबारा जन्म लेता है। (४) दांत --जो टूट कर शैशव में पुनः जमते हैं । 'श्रवन
अधर सुदर द्विज छबि अनूप न्यारी।' गी० १.२५.४ द्विजन, न्ह : द्विज+संब० । द्विजों। 'सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा ।' मा०
७.५.५ द्विजवर : श्रेष्ठ ब्राह्मण । मा० ७.१०५.७ द्विजामिष : (द्विज+आमिष) ब्राह्मण का मांस । मा० ६.४५.३ द्विजराज : सं०० (सं.)। चन्द्रमा। द्विजराजू : द्विजराज+कए । 'गे जहँ बिबुध कुमुद द्विजराजू ।' मा० २.२६४.४ द्विविद : एक वानर यूथप । मा० ५.५४ द्वेष : सं०० (सं०) । वैरभाव, द्रोह । मा० ७.१०१ क द्वेषु : द्वेष+कए । 'मनहुं उडुगन निबह आए मिलन तम तजि द्वेषु ।' विन०
७६.४ द्व : (१) दोइ । दो। 'पाप-पुन्य द्वै बीज हैं ।' वैरा० ५ (२) दोनों ही। 'फरकि
उठी द्वे भुजा बिसाला ।' मा० ४.६.१४ द्वत : सं०० (सं.)। द्विता, जीव और ब्रह्म को पृथक् मानने की वृत्ति, संशय;
जीव-ब्रह्म के तात्त्विक अभेद की अनुभूति का अभाव । 'द्वैत कि बिनु अग्यान ।'
मा० ७.१११ ख द्वतबुद्धि : द्वैत को तर्क से सिद्ध करने वाली बुद्धि । 'क्रोध कि द्वैत-बुद्धि बिनु ।'
मा० ७.१११ ख द्वतदरसन : (सं० द्वैत-दर्शन) । (१) द्वैतबुद्धि । (२) जीव-ब्रह्म को पृथक् देखने
वाली संसारी प्रवृत्ति । (३) जीव-ब्रह्म का पार्थक्य मानने वाला दर्शनशास्त्रअद्वैतविरोधी दर्शन । माधव दर्शन को छोड़कर अन्य वैष्णव दर्शन भी अद्वैत मान्य करते हैं। रामानुज के विशिष्टाद्वैत में जीव ब्रह्म का अंश है अतः वह अंशी से भिन्न होकर भी अभिन्न है-इसी अभेद की प्रतीति मोक्ष है और वही