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तुलसी शब्द-कोश
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दुम : सं०० (सं०) । वृक्ष । मा० १.६५ द्रोणि, णी : सं०स्त्री० (सं०) । घाटी, दो पहाड़ों के बीच (दोनी के आकार का)
भू-भाग, दर्रा । 'भूधर-द्रोणि-बिद्दरणि बहुनामिनी ।' विन० १८.२ द्रोन : सं०० (सं० द्रोण)। (१) कौरवों (तथा पाण्डवों) के धनुर्विद्या-शिक्षक ___ आचार्य । कृ०६० (२) पर्वतविशेष जिसे संजीवनी के लिए हनुमान जी उठा
लाये थे, जब लक्ष्मण के रावण की शक्ति लगी थी। हनु०६ द्रोनाचल : (दे० द्रोन) गी० ६.६.४ द्रोह : द्रोह से । 'तासु द्रोह सुख चहसि अभागी।' मा० ७.१०६.४ द्रोह : (१) सं०० (सं.)। द्वेष, वैरभाव । मा० ३.२ (२) (समासान्त में) _ वि.पु. (सं०) । द्रोह करने वाला । 'साईं-द्रोह ।' विन० ३३.६ ब्रोहपर : वि० (सं.)। वैर में तत्पर । विन० १३६.७ ब्रोहा : द्रोह । मा० २.१३०.१ द्रोहिहि : द्रोही को। मा० ७.१२७.१ द्रोही : वि.पु. (सं० द्रोहिन्) । द्वेषी, वैर करने वाला । मा० १.२३८.२ द्रौपदी : सं०स्त्री० (सं०) । द्रुपद राजपुत्री पाण्डवों की पत्नी । दो० १६६ द्वंद, द्वंद्व : सं०० (सं.)। (१) युगल, द्वय (जोड़ा)। ‘पदकंज द्वंद ।' मा०
७.१३ छं० ४. (२) परस्पर विरोधी तत्त्व- शीत-उष्ण, राग-द्वेष, हानि-लाभ, पाप-पुण्य, सुख-दुःख, दिन-रात्रि, जय-पराजय, अनुकूल-प्रतिकूल आदि जिनमें एक की प्रतीति से ही दूसरे की प्रतीति होती है। 'रघुनंद निकंदय द्वंद्व-घनं ।' मा० ७.१४.२० (३) द्वेत-बुद्धि जो उक्त द्वन्द्वात्मक बोध पर प्रतिष्ठित है जिससे
जागतिक भेदों की प्रतीति होती है-मायिक प्रत्यय । मा० ६.१०३ छं० १ द्वदजुद्ध : दो व्यक्तियों का परस्पर युद्ध। मा० ६.८६ द्वंद्वहर : वि० (सं०) । जागतिक द्वन्द्वों को दूर करने वाला। मा० ३.३२ छं० द्वादस : संख्या (सं० द्वादश) । बारह । गी० ७.२५.१ द्वादस-अच्छर : (सं० द्वादशाक्षर)। एक विष्णुमन्त्र जिसमें बारह अक्षर होते हैं
___ 'ओं नमो भगवते वासुदेवाय ।' मा० १.१४३ द्वादसि, सी : सं०+वि०स्त्री० (सं० द्वादशी) । (१) बारहवीं (२) पक्ष की
बारहवीं तिथि । विन० २०२.१३ द्वापर : सं०० (सं०) । (१) संशय, दुबिधा। (२) चतुर्युगी का तीसरा युग ।
'बहुरज स्वल्प सत्त्व कछु तामस । द्वापर धर्म हरष-भय मानस ।' मा० १०४.४ द्वार, रा : सं०० (सं० द्वार)। (१) बहिर्गमन-मार्ग, निकास, 'फाटक । 'सुभग द्वार
सब कुलिस कपाटा।' मा० १.२१४.१ (२) रन्ध्र, छिद्र । 'इंद्री द्वार झरोखा नाना ।' मा० ७.११८.११ (३) साधन, उपाय, मार्ग-साधक और साध्य के