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तुलसी शब्द-कोश
दौरि : दवरि । दौड़कर । 'खोरि खोरि दौरि दौरि दीन्ही अति आगि है।' कवि०
५.१४ दोरें: क्रि०वि० । दौड़ते हुए । 'बिनु पूंछ बिषान फिरै दिन दौरें।' कवि० ७.४६ दौरे : भूकृ.पु०ब० । दौड़ कर चले । 'अनेक गिरे जे जे भीति में दौरे ।' कवि०
६.१२ बाइबी : भकृ०स्त्री० । दिलानी (चाहिए)। 'मेरिओ सुधि द्याइबी कछु करुन कथा
चलाइ ।' विन० ४१.१ घायबी : द्याइबी। बति : सं०स्त्री० (सं०) । दीप्ति, कान्ति, आभा, चमक । विन० ६०.२ द्रव्य : सं० (सं० द्रव्य) । वस्तु । 'मंगल द्रव्य लिए सब ठाढ़ीं।' मा० १.२८८.६ द्रव : (१) सं०० (सं०) । पिघला हुआ द्रव्य । 'सोई भयो द्रवरूप सही।' कवि०
७.१४६ (२) द्रवइ । पिघलता-ती है। 'जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी।' मा० ३.१७.६ Vद्रव द्रवइ : (सं० द्रवति-द्रुगती>प्रा० दवइ>अ० द्रवइ) आ०प्रए ।
(१) पिघलता है, पिघल कर बहता है। (२) कृपा करता है, दयार्द्र होता है ।
'निज परिताप द्रवइ नवनीता।' मा० ७.१२५.८ प्रवउँ : आ.उए । द्रवीभूत होता हूँ। 'जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई।' मा० ३.१६.२ द्रवउ : आ० -प्रार्थना-प्रए । द्रवीभूत होवे, कृपा करे। 'द्रवउ सो दसरथ अजिर
बिहारी।' मा० १.११२.४ द्रवत : वकृ० । आद्रं होते, पिघल जाते । 'औढर दानि द्रवत पुनि थोरें।'
विन० ६.२ द्रवति : वकृ०स्त्री० । पिघल कर बह चलती, द्रवीभूत हो जाती। 'सिला द्रवति
जल जोर ।' दो० १७३ द्रवहिं : आप्रब० । द्रवीभूत हो चलते हैं। 'परदुख द्रवहिं संत सुपुनीता।' मा०
७.१२५.८ द्रवहु : आ०मब० । द्रवीभूत होते हो। 'कस न दीन पर द्रवहु उमावर।' विन० ७.१ द्रव : द्रवइ । (१) द्रवित होता-ती है। 'जोलौं देवी द्रव न भवानी अन्नपूरना।'
कवि० ७.१४८ (२) द्रवित होता हो । 'बिनु सेवा जो द्रव दीन पर राम सरिस
कोउ नाहीं।' विन० १६२.१ द्रवौ : द्रवहु । 'यह जिय जानि द्रवो नहीं ।' विन० १०६.३ द्रष्टा : वि.पु. (सं.)। देखने वाला, तस्वदर्शी, साक्षात्कर्ता, अन्तर्यामी रूप से
सर्वज्ञ । 'सकल दृश्य द्रष्टा ।' विन० ५३.७ द्रुपद : पञ्चालनरेश द्रौपदी के पिता । कृ०६१