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तुलसी शब्द-कोश
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त्रिजटा : त्रिजटाने । 'त्रिजटा कहा ।' मा० ६.६६ छं० त्रिजटा : (सं०) एक राक्षसी जो सीता की सखी हो गयी थी। मा० ५.११.१ त्रिताप : तापत्रय । हनु० २८ त्रिदस : सं०० (सं० त्रिदश)। देव । कवि० ७.१५० त्रिदोष : सं०० (सं.)। आयुर्वेद वर्णित तीन तत्त्व- वात, पित्त और कफ जब ___ कुपित होते हैं तो सन्निपात रोग (त्रिदोष) बनता है । हनु० २६ त्रिदोषदाह : सन्निपात रोग की जलन । कवि० ६.२५ त्रिदोषे : भूक००ब० । त्रिदोषग्रस्त, सन्निपात रोगी । 'कैधौं कूर काल बस तमकि
त्रिदोषे हैं।' गी० १.६५.२ त्रिपथ : तीन मार्ग (स्वर्ग, पाताल, मर्त्य)। 'त्रिपथ लससि नभ पताल धरनि ।'
विन० २०.१ त्रिपथगा : सं०स्त्री० (सं०) । गङ्गा । विन० १७.१ त्रिपथगामिनि : त्रिपथगा। कवि० २.६ त्रिपुंड : सं०० (सं० त्रिपुण्ड)। मस्तक पर भस्म आदि की तीन आड़ी रेखाएँ ।
मा० १.२६८.४ त्रिपुर : सं०० (सं.)। (१) असुरविशेष के तीन नगर=स्वर्ण, चाँदी तथा लौह
के पुर जो त्रिगुण के प्रतीक हैं (२) उन नगरों का स्वामी असुर=
त्रिपुरासुर । मा० १.५७.८ त्रिपुरारि, री : त्रिपुर के शत्रु-शिवजी । मा० १.४६; ४८.६ त्रिबलि, ली : सं०स्त्री. (सं० त्रिवलि, त्रिवली)। उदर की तीन सिकुड़नें या
रेखाएं । गी० ७.१६.३ 'नाभी सर त्रिबली निसेनिका ।' गी० ७.१७.६ त्रिबिक्रम : सं+वि० (सं० त्रिविक्रम)। विष्णु, विराट् भगवान् जिन्होंने तीनों
लोकों को तीन डगों =पादक्षेपों (विक्रमों) में नापा था (ऋग्वेद में त्रिलोक
व्यापी परमात्मा) । मा० ४.२६.८ त्रिविध : वि० (सं० त्रिविध)। तीन प्रकारों (विधाओं) वाला। 'त्रिविध ताप
त्रासक तिमुहानी।' मा० १.४०.४ त्रिबिधि : त्रिबिध । तीन विधियों (रीतियों प्रकारों) वाला । 'त्रिबिधि ताप भव
दाप नसावनि ।' मा० ७.३५.१ त्रिबेनिहिं : त्रिवेणी में । 'त्रिबेनिहिं आए।' मा० २.२०४.३ त्रिबेनी : त्रिवेणी में । 'सादर मजहिं सकल त्रिबेनीं।' मा० १.४४.४ त्रिबेनी : सं०स्त्री० (सं० त्रिवेणी) । प्रयाग में गङ्गा-यमुना-सरस्वती की त्रिधारा
(तीन वेणियों) का संगम । मा० २.२०५.६