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तुलसी शब्द- कोथ
टेढ़ : वि० (सं० तिर्यक + अर्ध > प्रा० तियड्ढ ) । वक्र, कुटिल । 'टेढ़ जानि सब बंद काहू ।' मा० १.२८१.६
टेढ़ी : विoस्त्री० । वक्र । 'तिलक भाल टेढ़ी भो हैं ।' गी० १.६३.३
टेढ़े : वि० ० ( बहु० ) । 'सूधे टेढ़े सम बिषम ।' दो० ५००
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टेपारो : टिपारो । 'तनियाँ ललित कटि बिचित्र टेपारो सीस ।' कृ० २
टेरत: वकृ०पु० । पुकारता, पुकारते । 'भुज उठाइ ऊँचे चढ़ि टेरत ।' गी०
२.१४.१
टेरि: (१) पू० । पुकार कर । 'अरु हौंहु कहत हौं टेरि ।' विन० १९०.७ (२) आ० - आज्ञा - मए० । तू पुकार । 'टरि कान्ह गोबर्धन चढ़ि गया ।' कृ० १६
टेरी : भूकृ० स्त्री० । पुकारी । 'प्रानबल्लभा टेरी ।' गी० ३.१०.२ टेरें : पुकार कर । 'तेहि तें कहहिं संत श्रुति टेरें ।' मा० १.१६१.३
टेरे : (१) भूकृ०पु०ब० । पुकारे, बुलाये । मा० १.६३.४ (२) टेरें । पुकारने से । 'अभय किये···बारक बिबस नाम टेरे ।' विन० १३८.१ (३) पुकार कर । 'भुज उठाइ कहीं टेरे ।' विन० २२७.१
टेव : सं० स्त्री० । स्वभाव, प्रकृति । 'या की टेव लरन की ।' कृ० ८
वैया : वि० । देने वाला, पैना करने वाला, तेज करने वाला ।' 'कोटि जलच्चर दंत टेवैया ।' कवि० ७. ५२
टोटक : सं०पु० (सं० त्रोटक ) । रोगनिवारण आदि हेतु ओझा आदि द्वारा कराया हुआ तान्त्रिक उपायविशेष जिसमें भोजन आदि कोई अभिमन्त्रित वस्तु को चौराहे आदि पर रख आते हैं, फिर घूम कर नहीं देखते । 'स्वारथ के साथिन्ह तज्योतिजरा को सो टोटक, औचट उलटि न हेरो ।' विन० २७२.२ टोटकादि : त्रोटक आदि तान्त्रिक उपाय | हनु० ३०
-टोने : 'टोना' का रूपान्तर । हिमालय की थारू जाति के जन्तर-मन्तर को 'टोना' कहते हैं जिसमें मारण, वशीकरण आदि की क्रिया होती है । वशीकरण आदि का मन्त्रविशेष । 'प्रभु किधौं प्रभु को प्रेम पढ़े प्रगट कपट बिनु टोने ।' गी० २.२३.३
टोलू : सं०पु० ( टोल + कए० ) । टोली, सजातीय दल । ' देखि निषादनाथ निज टोलू ।' मा० २.१९२.३ ( प्रा० 'टोल' टिड्डीदल का अर्थ देता है)