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तुलसी शब्द-कोश
टूका : टूक । खण्ड । 'अजहुं न हृदय होत दुइ टूका ।' मा० २.१४४.६ टूकु : टूक+कए । एक टुकड़ा, एक भी खण्ड । 'चाहै चारु चीर पं लहै न टूकु
टाट को।' कवि० ७.६६ टूट : (१) भूकृ०० (सं० त्रुटित>प्रा० तुट्ट)। भग्न हो गया। 'छुअत टूट
रघुपतिहि न दोषू ।' मा० १.२७२.३ (२) टूटइ । 'टूट न द्वार परम कठिनाई।'
मा० ६.४३.४ /टूट, टूटइ : (सं० त्रुट्यति>प्रा० तुट्टइ-टूटना, विच्छिन्न होना) आ०प्रए ।
टूटता है। टूटत : वकृ००। (१) भग्न होता, होते । 'टूटत ही धनु भयउ बिबाहू ।' मा०
१.२८६.८ (टूटते ही) (२) आक्रमण करता-ते । 'टूटत अति आतुर अहार
बस ।' विन० ६०.३ टूटि : (१) प्रकृ० । टूट कर । गी० २.५८.२ (२) भूकृ०स्त्री० । टूटी हुई। टटियो : टूठी हुई भी । 'टूटियो बांह गरे पर ।' विन० २७१.४ टूटिहि : आ०भ०प्रए । टूटेगा। 'अवसि राम के उठत सरासन टूटिहि ।'
जा०म०६१ टूटें : टूटने से, टूटने पर । 'होइहहिं टूटें धनुष सुखारे ।' मा० १.२३६.३ टूटे : (१) भूकृ०० ब० । भग्न हुए । 'उर लागत मूलक इव टूटे ।' मा० ६.२५.६
(२) टूटें । टूटने पर । 'श्रीहत भए भूप धनु टूटे ।' मा० १.२६३.५ टूटे उ : भूकृ०पु०कए । भग्न हो गया । 'टूटे उ कुबर फूट कपारू ।' मा० २.१६३.५ टूट : टूटइ। टूट सके । 'माधव मोह फांस क्यों टूट ।' विन० ११५.१ टूट्यो : टूटे उ । कवि० १.१० टेक : टेक । मा० २.३२४ टेई : भूकृ०स्त्री० । तेज की, पैनाई । 'कपट छुरी उर पाहन टेई।' मा० २.२२.१ टेक, टेका : सं०स्त्री०। (१) दृढ़ आग्रह । 'सकइ को टारि टेक जो टेकी ।' मा०
२.२५५.८ (२) स्थिरता । 'साधन कठिन न मन कहुं टेका।' मा० ७.४५.३ (३) आश्रय, आधार, अवलम्ब । 'सोक सरि बूड़त करीसहि दई काहु न टेक ।' विन० २१७.३ (४) उपाय (मार्ग)। 'जैबे को अनेक टेक, एक टेक वबे
की।' कवि० ७.८२ टेकि : पूक० । सहारा लेकर । 'जान टेकि कपि भूमि न गिरा।' मा० ६.८४.१ टेकी (१) टेकि । पकड़ कर (आग्रह करके, ग्रहण करके) । 'भरद्वाज राखे पद
टेकी ।' मा० १.४५.४ (२) भूकृ०स्त्री० । पकड़ी, ग्रहण की। 'सकइ को टारि टेक जो टेकी।' मा० २.२५५.८