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तुलसी शब्द-कोष
टाटिका : (१) सं०स्त्री० (सं० तटिका>प्रा० तट्टी) । टट्टी, वृति । (२) छप्पर का
ठाट जिम पर फूस छाया जाता है । 'बिरचि हरि भगति बर टाटिका कपट दल
हरित पल्लवनि छावौं ।' विन० २०८.२ टाप : सं०स्त्री० । घोड़े का खुर । 'टाप न बूड़ बेग अधिकाईं।' मा० १.२६९.७ . टारति : वक०स्त्री० । हटाती (बिताती)। 'सीय निमेष कलप सम टारति ।' गी०
५.१६.१ टारन : भ०० अव्यय । टालने (को); खिसकाने (को)। 'दीप बाति नहिं टारन
कहऊँ ।' मा० २.५६.६ टारा : भूकृ.पु । हिलाया-डुलाया, हटाया (हुआ)। 'टरइ न टारा।' मा०
१.२५१.१ टारि : पूक । टाल, हटा (कर) । 'भ्रम न सकइ कोउ टारि ।' मा० १.११७ टारी : (१) टारि । 'जौं मम चरन सकसि सठ टारी।' मा० ६.३४.६ (२) भूकृ. __स्त्री० । हटाई । 'ईस अनेक करवरें टारी ।' मा० १.३५७.१ टारें : टालने, हटाने से । 'न चाप सज्जन बचन जिमि टारें टरै ।' जा०म०छं० ११ टारे : भूक००ब० । हटाये । 'प्रभुहि बिलोकहिं टरहिं न टारे ।' मा० ६.४.७ ।। टारेउ : भूक.पु०कए । टाला, विचलित किया। 'छल करि टारेउ तासु ब्रत।'
मा० १.१२३ टार्यो : टारेउ । 'भवतरु टरै न टार्यो।' विन० २०२.२ टाहली : वि०पू० । टहलुआ, टहल करने वाला, घरेलू सेवक । 'सबनि सोहात है
सेवा सुजान टाहली।' कवि० ७.२३ टिटिभ : सं०पु० (सं०) । टिटिहरी पक्षी । मा० ६.४०.६ टिपारे : सं००ब० । चौतनियाँ, टोपियाँ । 'सीसनि टिपारे, उपबीत पीत पट
कटि ।' गी० १.७१.१ टिपारो : सं००कए० । टोपी, चौतनी । गी० १.४३.२ टीका : (१) सं०० (प्रा० टिक्क)। तिलक (राजतिलक, राज्याभिषेक)। 'करह
हरषि हियँ रामहि टीका।' मा० २.५.३ (२) श्रेष्ठ, सर्वोत्तम (तिलक के
समान सुशोभित) । 'रावनु जातुधान कुल टीका ।' मा० ६.३८.६ टीड़ी : सं०स्त्री० । टिड्डी; पतिंगा विशेष जो समूह में उड़कर खेती आदि पर
टूटता और खा जाता है । मा० ६.६७.२ टुक, टूक : वि० (सं० स्तोक) । थोड़ा, छोटा, खण्ड । 'पंख करौ टुक टूक ।' दो०
२८२, टुक । (१) टुकड़ा, खण्ड । दो० २८२ (२) रोटी का टुकड़ा, चौथाई
रोटी । 'खाए टूक सब के ।' कवि० ७.७३ ।। टूकनि, न : टूक+संब० । टुकड़ों. रोटी के खण्डों। 'कूकर टूकनि लागि ललाई ।'
कवि० ७.५७