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तुलसी शब्द-कोश
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झलकाहीं : आ.प्रब० । चमकते हैं। 'भाल बिसाल तिलक झलकाहीं।' मा.
१.२४३.६ झलकि : पूक० । चमक कर, दीप्ति बिखेर कर । 'झलकि झलझलत सोभा की
दीयटि ।' गी० १.१०.३ झलकी : भूक०स्त्री०ब० । चमचमा उठीं। 'झलकी भरि भाल कनी जल की।' ___ कवि० २.११ झलक : जलकाहीं । 'तन दुति मोर चंद जिमि झलक ।' गी० १.३१.२ झलक : झलकह। झलमलत : वक० । झिलमिलाता-ते । गी० १.१०.३ झष : सं०० (सं.)। मछली । मा० ६.४.५ झषकेतू : सं०० (सं० झषकेतु) मीनकेतु =मकरध्वज=कामदेव । मा० १.८३.८ झषराज : संपु । मगर, ग्राह । 'झषराज ग्रस्यो गजराज ।' कवि० ७.८ झहराने : भूकृ००ब ० । झुलस गये । 'लपट झपट झहराने ।' कवि० ५.८ Vझहराव झहरावह : आ०ए० । झिटकारता है, झुलसाता है। 'बालधी फिरावै
बारबार शहरावै।' कवि० ५.१४ झाई : (१) सं०स्त्री (सं० ध्यामिका>प्रा० शामिआ>अ० झावीं)। कालिमा,
काला धब्बा, छाया। 'ससि महुं प्रगट भूमि के झाई।' मा० ६ १२.५ (२) आभा, प्रतिच्छवि, प्रतिबिम्ब । 'तन मृदु मंजुल मेचकताई। झलकति बाल
बिभूषन झाई ।' गी० १.२४.२ झांकत : वक०० । ओट से ताकता-ताकते। 'झुकि झांकत प्रतिबिंबनि ।' गी०
झांकती : वक०स्त्री०ब० । आड़ में से ताकतीं। 'झांकती झरोखें लागीं।' कवि०
१.१३ झांकनि : सं०स्त्री० । झांकने की क्रिया, आड़ से देखने की रीति । गी० १.२८.३ झांकहिं : आ.प्रब० । आड़ से देखते-ती हैं। 'लागि झरोखन्ह झाखहिं भूपति ___ भामिनि ।' जा०म० ७२ झांकी : पूकृ० । झांक कर । कवि० ६.४४ झांखा : भूकृपु० । झींखा, बड़बड़ाया, व्याकुल प्रलाप करता रहा। 'अस कहि __राउ मनहिं मन झांका ।' मा० २.३०.१ झांझ, झि : संस्त्री० (सं० झाञ्झा) । वाद्यविशेष । मा० १.२६३.१ झोपेउ : भूकृ.पु.कए० (सं० झम्पितः>प्रा० झंपिओ>अ० झंपियउ) ।
आच्छादित हो गया। 'झोपेउ भानु कहहिं कुबिचारी ।' मा० १.११७.२