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तुलसी शब्द-कोश
झांवरे : वि.पुब ० (सं० ध्यामतर>प्रा० झामर>अ० झावर) । झुलसे, कुंभलाये
हुए, बेरंग । 'तदपि दिनहिं दिन होत झावरे मनहुं कमल हिम मारे ।' गी०
२.८७.३ झार : सं०स्त्री० (सं० झल्ला:= ज्वाला)। आंच, आग की लपट । 'तात तात
तौंसिअत झौंसिअत झार हीं।' कवि० ५.१५ (झारहीं =झार में) झारि, री : वि०+क्रि०वि० । (१) सम्पूर्ण, सबके सब । 'जितेउँ चराचर झारि।'
मा० ६.२७ (२) निरन्तर, नितान्त । 'झरना झरत झारि सीलत पुनीत बारि।'
कवि० ७.१४१ झारी : झरि । सब-के-सब । 'एक नारि ब्रत रत सब झारी।' मा० ७.२२.८ झारौं : आ० उए । झाड़ दूं। 'झारौं हौं चरन सरोरुह धूरि ।' गी० १.१३.२ ।। झालरि : सं० स्त्री० (सं० झल्लरी कुञ्चित केश रचनाविशेष) । झलकों के समान
कुञ्चित माला रचना, बन्दनवार, माङ्गलिक कार्यों में पुष्प रचना तथा पत्र रचना । रा०न० ३ (२) माला, हार । 'मुकुता झालरि झलक जनु राम सुजस
सिसुहाथ ।' दो० १६० झिग : ध्वनिविशेष । 'झरना झरत झिंग झिंग झिंग जल तरंगिनी।' गी० २.४७.१० झिल्लि झिल्ली : सं०स्त्री० (सं० झल्लिका) । झींगुर, कीटविशेष । गी० २.४७.१० झोनि, नी : वि०स्त्री० (सं० झीर्णा>प्रा० झिण्णी)। झांझर बुनावट वाली।
'पीत झीनि झुगुली तन सोही ।' मा० ७.७७.७ मझनु : घुघुरी आदि का रवविशेष । 'झुझुनु झुझुनु पायें पैंजनी मृदु मुखर ।' ___गी० १.३३.१ झुंड : सं०० (सं० झुण्ट) । समूह । कवि० ६.३१ झंडनि : झुड+संब० । झुन्डों (में) । 'चलीं झुडनि झारि ।' गी० ७.१८.४ झुकनि : सं०स्त्री० । झुकने की क्रिया, नत होना । गी० १.२८.३ झुकरे : वि०पु०ब० । मण्डलाकार गति में झूक भरे हुए+झुके हुए। 'रुंडन के झुड ___ झूमि झूमि झुकरे से नाचे ।' कवि० ६.३१ झुकि : पूकृ० । झुक कर, नत होकर । 'झुकि झांकत प्रतिबिंबनि ।' गी० १.३१.६ झुकी : भक स्त्री० । (१) नत हुई। कवि० ७.१३३ (२) आक्रामक मुद्रा में नत ___ खड़ी हुई । 'झुकी रानि अब रहु अरगानी ।' मा० २.१४.७ झुके : भकृ००ब० । नत हुए, आक्रामण हेतु उद्यत हुए । 'तुलसी उत झुड प्रचंड
झुके ।' कवि० ६.३४ झुटुग : झोटिंग (सं० जूटिंग) । झोंटाधारी+समूहवद्य । कवि० ६.५० झुठाई : सं०स्त्री० । झूठापन, मिथ्यावाद । 'मुढ़ सिखिहि वहँ वहुत झुठाई ।' मा०
६.३४.५