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तुलसी शब्द-कोश
अनीति : सं० स्त्री. (सं०) नीतिविरुद्ध आचरण, मर्यादा-रहित व्यवहार ।
मा० १.१८३ अनीती : अनीति । 'मिटइ भगति पथु होइ अनीती।' मा० १.५६.८ अनीस : सं० पुं०+वि० (सं अनीश) ईश्वर से भिन्न =जीव जो सर्व शक्तिमान
नहीं है । 'ईस अनीसहि अंतरु तैसें ।' मा० १.७०.२ अनीह : वि० (सं०) ईह=इच्छा से रहित, निष्काम, निरपेक्ष, उदासीन ।
मा० १.१३.३ अनु : अव्यय (१) संस्कृत का उपसर्ग-'अनुकूल' आदि में (२) 'अन्यथा' के अर्थ
में अपभ्रंश का स्वतन्त्र प्रयोग । 'देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं।' मा० २.३०.४ अनुकथन : सं० पुं० (सं०) अनुकीर्तन, प्रश्नोत्तर में विचार विनिमय, शास्त्रीय
निर्णय हेतु वाद-विवाद, निश्चय बोध हेतु तर्क-वितर्क । 'सुनि अनुकथन
परसपर होई ।' मा० १.४१.३ मनुकूल (अनुकूला) : वि० (सं०) (१) अपने पक्ष में आने वाला । मा० १.१५.७
(२) ओर, प्रति (जनक) । 'चली बिपति बारियी अनुकला ।' मा० २.३४.४
(३) दर्शनों में 'उत्पादक' अर्थ भी होता है जो उक्त उद्धारण में व्यङग्य है। अनुकूले : भू० क. पुं० (बहु०) । अनुकूल किए हुए । 'नित नूतन सुख लगि
अनुकूले ।' मा० १.३०४.८ अनुकूलो : अनुकूल+कए। गोसाईं सुसाई सदा अनुकूलो।' हनु० ३६ अनुग : वि० पु० (सं०) अनुगामी, अनुचर । 'राम अनुग जगु जान ।' मा० २.२२६ अनुगंता : अनुग। (सं.)। विन० ३८.३ अनुगनि : अनुग+सं० बं० । अनुगों, अनुचरों। 'उतरि अनुज अनुगनि समेत ।' गी० ६.२१.५ अनुगामी : वि० (सं० अनुगामिन्) । अनुग, अनुसरणकारी । मा० १.१७.६ अनुग्रहं : अनुग्रहपूर्वक । अनुग्रह से । 'राम अनुग्रहं सगुन सुभ ।' रा० १० ६.५.६ अनुग्रह : सं० ० (सं.)। कृपा, अनुकम्पा । मा० २.३.७ अनुग्रहु : अनुग्रह+कए। 'कृपा अनुग्रह अंगु अधाई।' मा० २.३००.५ 'कृपा' से
प्रभु के सामर्थ्य की व्यञ्जना होती है जबकि 'अनुग्रह' से भक्त को ग्रहण
करने-अपना अङ्ग बना लेने का अर्थ आता है । अनुचर : वि०पु० (सं०) पीछे चलने वाला, अनुगामी, परिचारक । मा० १.२७८.१ अनुचरन्ह : अनुचर+कए । अनुचरों (ने) । 'मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भंगा।'
मा० ७.५६.४ अनुचरी : वि० स्त्री० बहु० । अनुचरियां, पीछे चलने वाली परिचारिकाएं,
दासियां । 'तव अनुचरी करउं, पन मोरा ।' मा० ५.६.५ ।।