________________
तुलसी शब्द-कोश
25
अनामय : वि० (सं०) आभय =रोग, दोष, विकार से रहित । अजरामर,
निष्पाप । मा० १.२२.२ अनायास : क्रि० वि० (सं०) बिना किसी प्रयास के ही। 'अनायास उधरी तेहिं
काला।' मा० २.२६७.४ अनारंभ : वि० (सं०) आदिहीन+उत्पत्तिहीन । अजन्मा । 'अनारंभ अनिकेत
अमानी।' मा० ७.४६.६ न्यायदर्शन आरम्भवादी है जो ईश्वर को कर्ता मानकर, उसके द्वारा परमाणुओं से प्रपञ्च की सष्टि को मान्य करता है । इसके विपरीत वैष्णव दर्शन में ईश्वर को अविकृत परिणाम लेने वाला मानकर उपादान तथा निमित्त कारणों के रूप में मान्य किया गया है; वह बाहर से
सामग्री लेकर आरम्भ नहीं करता। अनिदिता : वि० स्त्री. (सं०) अनवधा, वाह्य तथा आभ्यन्तर कलुषों से रहित,
सर्वथा निर्दोष । मा० ७.२४.६ अनिकेत : वि० (सं०) गृहरहित, आश्रयहीन, स्वाधिष्ठान, स्वाश्रति, निकेत=
गृह+सूचक से रहित, अज्ञेय । 'अनारंभ अनिकेत अमानी ।' मा० ७.४६.६ अनिप : सं० पुं० (सं० अनीकप) सेनानायक । मा० ६.४६.१० अनिमादिक : अणिमा इत्यादि आठ योगसिद्धियां-अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा । प्राप्तिः प्राकाम्यमीशिवत्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः॥ (१) अणिमा =सूक्ष्म होने की शक्ति। (२) महिमा=महान् हो जाने की शक्ति । (३) लघिमा-हलका होने की शक्ति । (४) गरिमा =भारी होने की शक्ति । (५) प्राप्ति=जहाँ चाहें, जाने की शक्ति । (६) प्राकाम्य=अभीष्ट वस्तु सुलभ करने की शक्ति। (७) ईशित्व =सब पर प्रभुता की शक्ति । (८) वशित्व=सबको वशीभूत करने की शक्ति । 'होहिं सिद्ध अनिमादिक
पाएं ।' मा० १.२२.४ अनियत : आनियत । वक पु० क वा। लाया जाता। 'महिमा समुचित डर
अनियत ।' विन० १८३.३ अनिर्बाच्य : वि० (सं० अनिर्वाच्य=अनिर्वचनीय) वाणी द्वारा जिसका निर्वचन= विवेचन असम्भव हो, अकथ्य, अप्रमेय । 'पावा अनिर्वाच्य बिधामा।'
मा० ५.८.२ अनिल : सं० पु० (सं.) वायु । मा० १.७.१२ अनिश : क्रि०वि० (सं०) निरन्तर सदैव, अविराम। मा० ५.२ श्लो० १ अनी : सं० स्त्री (सं० अनीक>प्रा० अणीअ) सेना। मा० २.१२६ छं. अनीकाका : सं० पु० (सं० अनीक) =अनी । 'कलुष अनीक दलन रनधीरा।'
मा० २.१०५.६