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तुमसी शब्द-कोश
357 जीत्यो : भूकृ.पु.कए । (१) जीत लिया गया, पराजित हुआ। 'मातु समर ___जीत्यो दस सीसा।' मा० ६.१०७.७ (२) जीता (जीतना) । 'चहत जीत्यो
रारि रन में ।' गी० ५.२३.१ जीन : सं०० (सं० जीन=चमड़े का थैला-फा० जीन) । घोड़े की काठी।
'रचि रचि जीन तुरग तिन्ह साजे ।' मा० १.२९८.४ जोनु : जीन+कए । 'जगमगत जीनु जराव ।' मा० १.३१६ छं० जीविका : सं०स्त्री० (सं० जीविका) । जीवन-वृत्ति, जीवन यात्रा, जीवनयापन हेतु
व्यवसाय, रोजी । 'जीबिका बिहीन लोग सीघमान ।' कवि० ७.६७ जोबे : भकृ०० (सं० जीवितव्य>प्रा० जिइअव्वय)। जीने (को)। “जीवे न
ठाउँ, न आपन गाउँ ।' कवि० ७.६२ जीबो : भकृ००कए । जीना (जिया जा सकता है)। 'है जग ठाउँ, कहूं वं ___जीबो।' कृ. जीम : सं०स्त्री० (सं० जिह्वा>प्रा० जिब्भा>अ० जिब्भ)। मा० १.६४.४ जीयें : जियें । जी में, मन या अन्तरात्मा में । 'जैसी मुख कहौं तैसी जीयें जब
आनिहौं ।' कवि० ७.६३ जीय : जिय । विन० २६३.१ जीव : सं०० (सं.)। (१) प्राणी । 'जड़ चेतन जग जीव जत ।' मा० १.७
(२) चित् तत्त्व, ईश्वरांश आत्मा, (सांख्य में) पुरुष, जीवात्मा। 'ब्रह्म जीव बिच माया जैसें ।' मा० २.१२३.२ (३) जीवन । 'सुदर जुबा जीव परहेलें।' मा० १.१५६.३ (४) (सं० जीवति इति जीवः के अनुसार आशीर्वादार्थक)
चिरंजीव, जी । 'कहि जय जीव सीस तिन्ह नाए।' मा० २.५.२ जीवजाल : (दे० जाल) जीव समूह । हनु० २४ जीनत : वकृ०० (सं० जीवत् >प्रा० जीवंत)। जीता, जीते, जीते हुए। 'जीवत
सकल जनम फल पाए।' मा० २.१६१.३ (२) जीते-जी, जीवित रहते । 'जीवत
हमहि कुआरि को बरई ।' मा० १.२६६.४ जीवति : वकृ०स्त्री० । जीती, प्राणधारण करती। 'कतहुं रहउ जो जीवति होई।' ___ मा० ४.१८.३ जीवन : सं०० (सं.)। (१) प्राणधारण । 'मम जीवन तिमि तुम्हहिं अधीना।'
मा० १.१५१.६ (२) जीवन साधन । 'राम भगत जन जीवन सोई।' मा. १.३६.७ (३) आयुष्य जन्म से मरण तक का समय। 'लघु जीवन संबत पंचदसा ।' मा० ७.१०२.४ (४) भकृ० (सं० जीवितुम्>प्रा० जीविउं>अ. जीवण) जीने । 'कवनि राम बिनु जीवन आसा ।' मा० २.५१.५ (५) जिलाने वाला । 'श्रीजानकीजीवनम् ।' मा० ४ श्लोक २ (६) जीव+संब० । जीवों