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तुलसी शब्द-कोश जीजी : सं०स्त्री० (सं० आर्या+जीव>प्रा० अज्जा+जीव>अ० अज्जी+जीव)।
बड़ी बहन के लिये प्रयुक्त आदर सूचक शब्द । कवि० २.४ जोजे : आ०भावा० (सं० जीव्यते>प्रा. जिइज्जइ) । (१) जिया जाता है, . जीवित रहा जाता है । 'मारें मरिअ जिअएँ जीज।' मा० ३.२५.४ (२) जीवित
रहा जाय, जिया जा सकता है । ग्वालिनि तो गोरस सुखी, ता बिनु क्यों
जीज।' कृ०७ जीत : जीतइ । जीत सकता है। 'समर भूमि तेहि जीत न कोई।' मा० १.१३१.३ जीत जीतइ : (सं० जितयति>प्रा० जितइ-विजय करना) आ०प्रए ।
जीतता है, जीत सकता है। एहि जीतइ रन सोइ ।' मा० १.८२ जीतन : भकृ० अव्यय । जीतने । 'जीतन कहुं न कतहुं रिपु ता के।' मा०
६.८०.११ जीतनिहार, रा : वि.पु । जीतने वाला । रामहि समर न जीतनिहारा।' मा.
२.१८६.७ जीतह : आ०मब० । जीत लो। 'जीतहु समर सहित दोउ भाई।' मा० १.२६६.५ जीता : भूक०० । 'जीत लिया। 'ख्याल ही बालि बलसालि जीता।' कवि०
नीति : (१) पूक० । जीत कर । पुष्पक जानि जीति लै आवा।' मा० १.१७६.८
(२) सं०स्त्री० (सं० जिति>प्रा. जित्ति)। विजय । 'सुन तिन्ह की कोन
तुलसी जिन्हहि जीति न हारि ।' कृ० ५३ जीतिअ : जीतिए । जीता जा सकता है । 'सपनेहुं समर कि जीतिअ सोई ।' मा०
६.५६.८ जोतिए : आ०-कवा०-प्रए । जीता जा सकता है । 'तुलसी तहाँ न जीतिए।'
दो० ४३० जोतिबो : भक००कए । जीतना । 'प्रभु के हाथ हारिबो जीतिबो।' विन०
२४६.४ जोतिहहिं : जितिहहिं । 'जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे ।' मा० ६.४३.१ जीती : (१) भूकृ०स्त्री० । जीत ली । 'सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती।' मा०
१.२२०.५ (२) जीति । जीतकर । 'एकहि एक सकइ नहिं जीती।' मा०
६.५४.१ जीतें : जीतने में । 'जीतें हारि निहारु ।' दो० ४२६ जीते : भूकृ००ब० । जीत लिये । 'जीते सकल भूप बरिआई ।' मा० १.१५४.६ जीतेहु : जितेहु । तुमने जीते। 'जीतेहु लोकपाल सब राजा।' मा० ६.२०.४ जीते : जीतइ । जीत सके । 'जो न तुम्हहि जीत समाहीं।' मा० ५.५५.४ जीत्यों : जितेउँ । मैंने जीत लिए । 'जीत्यों अजय निसाचरराऊ।' मा० ६.११२.३