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________________ 350 तुलसी शब्द-कोश जारेउ : भूकृ.पु.कए । जला डाला।' 'जारेउ कामु महेस ।' मा० १.८६ जारेहुं : जलाने पर भी । ‘जारेहुं सहज न पीहर सोई ।' मा० १.८०.६ जारें : आ०प्रब० । जलाते हैं । 'छाती पराई औ आपनी जरें।' कवि० ७.१०४ जार : भक • अव्यय । जलाने । 'जार जोगु कपारु अभागा। मा० २.१६.७ जारो : जार्यो। नामहं पाप न जारो।' विन० ६४.६ जार्यो : जारेउ । 'उतरि सिंधु जार्यो पचारि पुर ।' गी० ६.१.६ जाल, ला : सं०० (सं० जाल-जालक>प्रा० जाल =जालअ)। (१) जाली, झालर आदि । 'कनक कलस तोरन मनि जाला ।' मा० १.२६६.८ (२) पाश, फंसाने वाला बागुर । 'जलचर बद जाल अंतर गत होत सिमिटि इक पासा ।' विन० ६२.६ (३) बन्धन । 'सुमिरत समन सकल जग जाला।' मा० १.२७ ५ (४) लपेट, लपट । 'उगिलत ज्वाला जाल ।' दो० ३७५ (५) समूह । 'बिथकी सुनि जुवति जाल ।' गी० २.१७.३ (६) फैलाव, बौंड' प्रतान । 'श्रीफल कुच, कंचुकि लता जाल ।' विन० १४.५ जालिका : जाल (सं.) । जाली। (१) पाश, बागुरा। 'भूत ग्रह बेताल खग मृगालि जालिका।' विन० १६.२ (२) समुदाय । 'प्रनत जन कुमुद बन इंदु कर जालिका।' विन० ४८.५ जाल, लू : जाल+कए । 'जरम मरनु जहँ लगि जग जालू ।' मा० २.६२.६ जाले : जाला+ब० । 'मकरी के से जाले।' हनु० १७ जावक : सं०० (सं० यावक)। महावर, लाक्षानिमित रंग विशेष जिसे सौभाग्य वतियाँ पावों में रचाती हैं। विवाहादि में वर के पैरों में लगाया जाता है। 'जावक जुत पद कमल सुहाए।' मा० १.३२७.२ जावनु : सं०पु०कए । जावन =दही बनाने हेतु दूध में डाला जाने वाला दावन । मा० ७.११७.१४ जासु, सू : सर्वनाम-संबन्ध ए० (सं० यस्य>प्रा० जस्य>अ० जासु) । जिसका-की के। 'जासु गुन....।' मा० १.१२ 'बड़ रखवार रमापति जासू ।' मा० १.१२६.८ जाहि, हीं : आ०प्रब० (सं० यान्ति>प्रा० जांति>अ० जाहिं)। (१) जाते हैं । 'जाहिं जहाँ जहँ बंधु दोउ ।' मा० १.२२३ (२) जा सकते हैं (कर्मवाच्यार्थक) । पद राजीव बरनि नहिं जाहीं।' मा० १.१४८.१ (३) आ० उब । हम जाते हैं, जायँ । 'नाथ कहिअ हम केहि मग जाहीं।' मा० २.१०६.१ (४) सर्वनाम-जिसमें, जहाँ । 'सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा ।' मा० १.२३६.८ जाहिंगे : आ०म०प्रब० । जायेंगे । 'नीच जाहिंगे कालि ।' दो० १४५
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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