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________________ तलसो शब्द-कोश 345 जानहि : जानसि (अ० जाणहि) । तू जानता है । 'केवल मुनि जड़ जानहि मोही।' मा० १.२७२.५ जानहुँ' : आ० -संभावना-प्रब० । चाहे वे जाने । 'जानहुं रामु कुटिल करि मोही।' मा० २.२०५.१ जानहु : आ०मब० (सं० जानीथ, जानीत>प्रा० जाणह>अ० जाणहु) । (१) तुम जानते हो। 'सो तुम्ह जानहु अंतरजामी ।' मा० १.१४६.७ (२) तुम जानो। 'अग जग नाथ अतुल बल जानहु ।' मा० ६.३६.८ जाना : (१) भूकृ०० । जान गया, समझा, पहचाना । 'देखि सुबेष महामुनि जाना।' मा० १.१५८.७ (२) क्रियाति । यदि जाना होता । 'जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना। तो कि बराबरि करत अयाना ।' मा० १.२७७.२ (३) जान । जाने हेतु । 'रामहि रायँ कहेउ बन जाना।' मा० २.२६२.३ (४) जान (यान) । 'खग मग हय गय बहु बिधि जाना।' मा० १.३०५.४ (५) जानइ । 'तेहि न जान नृप नपहि सो जाना ।' मा० १.१६०.५ (६) ज्ञान, बोध । समझ । 'हमरें जाना..... सब धनुष समाना।' मा० १.२७२.१ जानाभि : आ० उए० (सं०) । जानता हूं। मा० ७.१०८.८ जानि : (१) पू० । जानकर, ज्ञात कर । 'करहु कृपा जन जानि मुनीसा ।' मा० १.१८.६ (२) आ०-आज्ञा-मए० । तू जान । 'जूझ जुआ जय जानि ।' रा०प्र० २.४.२ (३) (समासान्त में)=जाया। पत्नी । दे० जानकी जानि । जानिअ : आ०-कवा०-प्रए० (सं० ज्ञायते>प्रा० जाणीअइ) । जान पड़ जाता है, ज्ञात रहता है । 'गुर प्रसाद सब जानिअ राजा ।' मा० १.१६४.२ जानि : आ०-भूकृ०स्त्री०+उए। मैं ने जानी। 'जानिउ प्रिया तोरि चतुराई।' मा० ६.१६.६ जानिए : जानिअ । जानना चाहिए । 'संतराज सो जानिए।' वैरा० ३३ जानिऐ : जानिए । 'मोहि जानिऐ निज दास ।' मा० ६.११३.८ जानिबी : भक०स्त्री० (सं० ज्ञातव्या>प्रा० जाणिअव्वा>अ० जाणिव्वी) जाननी (चाहिए, होगी)। 'प्रान प्रिय सिय जानिबी।' मा० १.३३६ छ। जानिबे : भकृ०० (सं० ज्ञातव्य>प्रा० जाणिअव्वय) । जानने (चाहिएं)। 'सेवक जानिबे बिन गथ लएँ ।' मा० १.३२६ छं० २ (२) जान पड़ेंगे। 'दिवस छसात जात जानिधे न मातु ।' कवि० ५.२७ जानिबो : भकृ००कए० (सं० ज्ञातव्य:>प्रा० जाणिअव्वो) । जानना (चाहिए)। 'नीच गुड़ी लौं जानिबो।' दो० ४०१ जानिय, ये : जानिअ । धान को गांव पयार तें जानिय ।' कृ० ४४
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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