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तुलसी शब्द-कोश
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जातुधानेस : रावण । गी० ५.४२.३ जाते : (१) (जा+ते) जिससे । 'जा ते लाग न छुधा पिपासा ।' मा० १.२०६.८
(२) क्रियाति० पु०बहु० (सं० अयास्यन् >प्रा० जंतया)। चाहे जाते हों। पोन के गौनहुं तें बढ़ि जाते ।' कवि० ७.४४ (३) यदि तो जाते। 'जो मोहि राम लागते मीठे। तो नवरस षटरस अनरस रस ह जाते सब सीठे।'
विन० १६६.१ जातेउँ : क्रियाति० पु.उए । (तो) मैं जाता । 'ल जातेउँ सीतहि बरजोरा ।' मा०
६.३०.५ जातो : क्रियाति० पु०ए० । यदि..तो जाता। 'जो पं चेराई राम की करतो न
लजातो... (तो).. सो जड़ जाय न जातो!' विन० १५१.८ जादव, दो : सं०० (सं० यादव) । यदुवंशी क्षत्रिय । विन० २१४.२ जादौ : जादव । दो० ४२५ जान : (१) सं०० (सं० यान>प्रा० जाण)। वाहन, सवारी । 'चले जान चढ़ि ।'
मा० १.३००.५ (२) भकृ० अव्यय । जाने को। 'पुर बैकुंठ जान कह कोई ।' मा० १.१८५.२ (३) सं०० (सं० ज्ञान>प्रा० जाण)। बोध, समझ । मेरे जान और कछु न मान गुनिए ।' कृ० ३७ (४) वि.पुं० (संज्ञ>प्रा० जाण) । जानकार, ज्ञानी, प्रबुद्ध । 'जेहि जान्यो सो जान ।' दो० ६० 'जानसिरोमनि कोसलराऊ ।' मा० १.२८.१० (५) जानइ । 'सुर बिजई जग जान ।' मा० १.१२२ (६) दे० जानकी-जान । जान जानइ : (सं० जानाति>प्रा० जाणइ-जानना, समझना) आ०ए० । जानता है, ज्ञान पाता है। 'सोइ जानइ जेहि देहु जनाई।' मा० २.१२७.३ (२) समझता है, संभावना करता है । 'सोइ जानइ जनु आइ खुटानी।' मा०
१.२६८.३ जान' : आ० उए० (सं० जानाभि>प्रा० जाणाभि>जाणउँ)। जानता-ती-हं।
'कह तापस, नृप जानउँ तोही ।' मा० १.१६३.८ जानकि : जानकी । मा०२.७३.४ जानकिहि : जानकी को, के लिए । 'जोगु जानकिहि यह बरु अहई।' मा०
१.२२२.१ जानकी : जानकी ने । 'सुनि जानकी परम सुख पावा।' मा० ३.६.१ जानकी : सं०स्त्री० (सं०) । जनकराज की पुत्री=सोता। मा० १.१८.७ जानकीजान : जानकी जानि । 'जियँ जाचिअ जानकी जानहि रे ।' कवि० ७.२८