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तुलसी शब्द-कोश
जमी : वि०० (सं० यमिन् >प्रा० जमी)। संयमी, योगी। 'देखि लोग सकुचात
जमी से ।' मा० २.२१५.५ जमु : जम+कए । मृत्यु देवता । 'केहि जम यह लीन्हा ।' मा० २.२६.१ जमुन : जमुना । मा० १.१४७ जमुनहिं : यमुना पार, यमुना में 'बीच बास करि जमुनहिं आए।' मा० २.२२०.८ जमुनहि : यमुना को । 'जमुनहि कीन्ह प्रनामु बहोरी।' मा० २.११२.१ जमुना : सं०स्त्री० (सं० यमुना>प्रा० जमुणा) । नदी विशेष । मा० १.३१.११ जमुहात : वकृ०० (सं० जम्मभाण>प्रा० जंभंत>अ० जम्हंत) । जंभाई लेता
ते । 'राम कहत जमुहात । मा० २.३११ जमुहान : भूकृ०पु० (प्रा० जम्माण> जम्हाण) । जंभाया (जंभाई ली)।
"कुंभकरन जमुहान ।' रा०प्र० ५७.२ जमुहाहि, हीं : आ०प्रब० । अँभाते हैं। 'राम राम कहि जे जमुहाहीं।' मा०
२.१६४.५ जम्यो : भूकृ००कए । जम गया, घनीभूत हो गया। 'रुधिर गाड़ भरि भरि
जम्यो ।' मा० ६.५३ जय : सं००+स्त्री० (सं.)। (१) विजय, जीत । 'निज पुर गवने जय जसु
पाई।' मा० १.१७५.८ (२) विष्णु के एक द्वारपाल का नाम । मा० १.१२२.४ (३) प्रणाम सूचक शब्द । जय हो । 'जय जय सुर नायक ।' मा० १.१८६.१ (४) एक संवत्सर का नाम । 'जय संबत फागुन सुदि ।' पा०म० ५ (५) अभ्युदय कामना में जय शब्द । 'जय जय धुनि पूरी ब्रह्म डा।' मा०
६.१०३.१० (६) दे० जयति । जयंत, ता : सं०० (सं० जयन्त) । इन्द्र का पुत्र । मा० २.१४१; ३.२.६ जयऊ : भूकृ.पु०कए । जीत गया । 'भरत धन्य, तुम्ह जसु जग जयऊ ।' मा०
२.२१०.६ दे० जयति । जयकर : वि० (सं.)। विजेता । 'जय जयंत जयकर ।' कवि० ७.११३ जयकार, जय जयकार : जयध्वनि, जयघोष, 'जय जय' ध्वनि । ६.७६ जयजीव : (जय = विजयी हो, सर्वोपरि रहो+जीव=जिओ) । ब्राह्मण द्वारा राजा
को कहा हुआ आशीर्वाद-विजय प्राप्त करो और चिरंजीवी होओ। 'कहि
जयजीव बैठ सिंह नाई।' मा० २.३८.६ जयति : आ.प्रए० (सं० जयति =सर्वोत्कर्षेण वर्तते)। सर्वोपरि सत्तावान है,
परात्पर रूप में विद्यमान है । 'जयति सच्चिदानंदा।' मा० १.१८५ छं० ४
(सर्वोपरि सत्ता से प्रणाम अर्थ की स्वत: व्यञ्जना होती है ।) जयमय : वि० (सं०) । विजयपूर्ण, अभ्युदयसूचक । 'जय' शब्द सहित नाम युक्त ।
'जयमय मंजुल माल उर ।' रा०प्र० ४.७.३