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________________ 328 तुलसी शब्द-कोश जपिए, ये : आ०कवा०प्रए० (सं० जप्यते>प्रा. जप्पीअइ) । जपा जाय । 'महामंत्र जपिये सोई जेहि जपत महेस ।' विन० १०८.२ जपिहै : आ०भ० (१) प्रए० (सं० जपिष्यति>प्रा० जप्पिहिइ)। वह जपेगा। (२) मए० (सं० जपिष्यसि>प्रा० जप्पिहिसि>अ० जप्पिहिहि)। तू जपेगा । 'राम जीह जौ लौ तू न जपिहै ।' विन० ६८.१ जपु : आ०-आज्ञा-मए० (सं० जप>प्रा० जप्प>अ० जप्पु)। तू जप । 'जपु राम नाम षटमास ।' दो० ५ जपें : जपने से । 'जहाँ बालमीकि भए ब्याध ते मुनिंद साधु 'मरा मरा' जपें।' कवि० ७.१३८ जपे : जपें । 'राम नाम के जपे जाइ जिय की जरनि ।' विन० १८४.१ जपेउ : भूक००कए ० । जपा, जप किया। 'ध्र वं सग लानि जपेउ हरि नाऊँ।' ___ मा० १.२६.५ ज4 : जपहिं । 'हर से हरनिहार जपं जाके नाम ।' गी० ५.२५.२ जप : दे०जप। जप्यो : जपेउ । 'जीहहू न जप्यो नाम ।' विन० ३६१.२ जब : अव्यय । जिस समय । मा० १.३.५ जबहि, हीं : जभी, ठीक जिस समय, ज्योंही। 'आदि सष्टि उपजी जबहिं ।' मा० १.१६२ जबहू : जब भी, जो कभी । 'सुरपति सरिस होइ नप जबहूं।' मा० ७.१२८.५ जब : जबहिं । कवि० ७.५१ जम : सं०० (सं० यम) । (१) यमराज, मृत्युदेव । मा० १.१७५ (२) अष्टाङ्ग योग का प्रथम अङ्ग. जिसके पाँच भाग हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । 'क्षम जम नियम फूल फल ग्याना ।' मा० १.३७.१४ जमकातरि : संस्त्री० (सं० यमकर्तरी>प्रा० जमकत्तरी>अ० जमत्तरि)। मृत्यु देव की तलवार, यमधारा (जमधार)। 'तोरि जमकातरि मदोदरी कढोरि आनी।' हनु० २७ जमगन : सं०० (सं० यमगण) । यमदूत । विन० ६६.३ जमघट : सं०पू०। यमदूत । तो जमघट साँसतिहेर हम से बषभ खोजि खोजि बहते ।' विन० ६७.४ 'जमघट' समूह या जमाव का अर्थ भी देता है जिसे त्रिदोषज सन्निपात रोग का आशय भी निकलता है-'धक्का दे दै जमघट थके।' विन० २६७.२ जमजातना : सं०स्त्री० (सं० यम-यातना) । नारकीय व्यथा । नरक । 'जमजातना सरिस संसारू।' मा० २.६५.५
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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