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तुलसी शब्द-कोश
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जन्म दरिद्र : जन्म से दरिद्र, दरिद्र होकर (दरिद्र माता-पिता से) उत्पन्न । मा०
१.२८६३ जन्मभूमि : सं०स्त्री० (सं०) अपने जन्म का भूभाग। मा० ७.४.५ जन्म : जन्म+कए । 'पारबती कर जन्म सुनावा।' मा० १.७६.७ जन्मौं : जन्म+उए । जन्म लूं । 'जेहिं जोनि जन्मौं कर्मबस तहँ राम पद
अनुरागऊँ ।' मा० ४.१० ७० २ जन्यो : भूक०कए० (सं० जनित:>प्रा० जणिओ>अ० जणियउ)। उत्पन्न
किया । 'अदिति जन्यो जग भानु ।' गी० १.२२.११ जप : सं०० (सं०) । मन्त्र (आदि) का सूक्ष्म उच्चारण—जिसके तीन भेद किये
गये हैं (१) किंचित् श्रव्य (२) उपांशु = जिसमें मुख के बाहर ध्वनि न निकले (३) मानस जप-जिस में मंत्र के अक्षरों का ध्यान मात्र होता है। उत्तरोत्तर
फल में अधिकता बताई गयी है । जपयज्ञ । मा० १.१३१.८ जपंत : जपत । मा० ३.३२ छ०
जप, जपइ : (सं० जपति>प्रा० जप्पइ-जप करना) आ०प्रए० । जपता-ती-है। _ 'जागिबो जो जीह जपै नीके राम नाम को।' कवि० ७.८३ जप : आ० उए । जपता हूं, जपा करता हूँ (था)। 'जपउँ मंत्र सिव मंदिर
जाई ।' मा० ७.१०५.८ जपजाग : अनुष्ठान के रूप में जपकर्म ; जप का नियम से विधान के अनुसार
अनुष्ठान । 'समन अमित उतपात सब भरत चरित उपजाग।' मा० १.४१ जपत : वकृ०० (सं० जपत् >प्रा० जप्पंत) । जपता, जपते । 'उमा सहित जेहि ____ जपत पुरारी।' मा० १.१०.२ ।। जपति : जपत+स्त्री० । जपा करती। मा० ५.८.८ जपन : भक० । जप करने । 'अस कहि लगे जपन हरि नामा ।' मा० १.५२ ८ जपने : भक००ब० (सं० जपनीय) । 'गौरि गिरापति नहिं जपने ।' कवि० ७.७८ जयहि : आ०प्रब० (सं० जपन्ति>प्रा० जप्पंति>अ० जप्पहिं)। जप करते हैं । . 'साधक नाम जपहिं लय लाएं ।' मा० १.२२.४ जपहि : जपु (सं० जप>प्रा० जप्पहि) । तू जप । 'मंत्र सो जाइ जपहि ।' विन०
२४.४ जपहु : आ० मब ० (सं० जपत.>प्रा० जप्पह>अ० जप्पडु)। जपो । 'जपहु जाइ
संकर सत नामा ।' मा० १.१३८.५ जपामि : आ० उए० (सं०)। जपता हूं । मा० ७.१४ छ । जपि : पूक० । जप करके । जपि जेई पिय संग भवानी।' मा० १.१६.६