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________________ तुलसो शब्द-कोश 263 घालि : पूकृ० (प्रा० घल्लिय>अ० घल्लि)। (१) डालकर । 'कबहुं पालने घालि झुकावै ।' मा० १.२००.८ (२) घाते या पासंग के बराबर करके । 'बिभीषन घालि नहिं ता कहुं गर्न ।' मा० ६.६४ छं० घालिहै : आ०भ०ए० (प्रा० धल्लिहिइ) । नष्ट करेगा-गी। 'बानरू बड़ी बलाइ घने घर घालिहै ।' कवि० ५.१० घाली : (१) भूक स्त्री० । डाल दी, छोड़ दी। 'राम सेन निज पाछे घाली।' मा० ६.७०.६ (२) घालि । डालकर (छिपाकर) । 'सो भुजबल राखेहु उर घाली ।' मा० ६.२६.८ (३) डालकर । ‘गयउ तुम्हारेहिं कोछे घाली।' मा० ७.१८.२ घालें : घालने से, छोड़ने से (मारने से) । 'भलो न घालें घाड ।' दो० ४२४ घाले : (१) भूकृ००ब० । नष्ट किये, उखाड़ फेंके । 'थप थिर के कपि जे घर घाले ।' हनु० १७ (२) घालें । मिश्रण से, डालने से, ओत-प्रोत करने से । 'अब देह भई पट नेह के घाले ।' कवि० ७.१३३ घालेसि : मा० भूकृ००+प्रए । उसने नष्ट कर डाला । 'घालेसि सब जग बारह बाटा ।' मा० २.२१२.५ घालेहि : आ०-भूकृ००+मए० । तूने नष्ट किया। 'केहि के बल घालेहि बन खीसा।' मा० ५.२१.१ घाले : (१) घालइ (२) भकृ० अव्यय । घालने, नष्ट करने । 'घाल लिए सहित समुदाई ।' मा० १.१७४.१ घालो : भूकृ००कए । बिगाड़ा, नष्ट किया। 'जाहि घालो चाहिए, कही धौं, राखै ताहि को।' कवि० ७.१०० घास : सं०पू० (सं०) । पशु खाद्य तृण । बर० ५६ घासी : घास । तृण, चारा । विन० २२.८ धाहैं : सं०स्त्री०ब० । घाटियां, कुण्ड । 'धारै बान, कूल धनु, भूषन जलचर, भंवर सुभग सब घाहैं।' गी० ७.१३.३ घिन : सं०स्त्री० (सं० घणा>प्रा० घि >अ० घिण)। जुगुप्सा । 'काल चाल हेरि होति हिथे घनी घिन ।' विन० २५३.२ घिनात : वकृ०० । घृणा करता-ते । 'जो 4 अधिक घिनात।' विन० २१७.६ घिय : सं०० (सं० घृत>प्रा० घिय) । घी । पिघले हैं आँच माठ मानो घिय के ।' गी० ४.१.२ घी : घिय । 'सोइ आदरौ आस जाके जिय बारि बिलोबत घी की।' कृ० ४३ घीय : घी। विन० २६३.३
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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