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तुलसी शब्द-कोशः . अर्थ में है जो आमाशयगत भोजन को लेकर आंतों में प्रेरित करता है । उसी
का लाक्षणिक प्रयोग कोल्हू के उस भाग के लिए होता है जिसमें पेरने वाली
वस्तु डाली जाती है।) 'घाम, मा : सं०पू० (सं० धर्म>प्रा० घम्म)। (१) धूप, ऊष्मा। 'मध्य दिवस
अति सीत न घामा ।' मा० १.१६१.२ (२) ताप, क्लेश । 'सुमिरे त्रिबिध घाम
हरत।' विन० २५५.१ घामु : घाम+कए० । 'घोर घामु हिम बारि बयारी।' मा० २ ६२.४ घाम : घाम को। 'चल्यो सुरतरु तकि तजि घोर घाम ।' गी० ५.२५.४ घामो : घाम भी । 'करत छाँह घोर घामो।' विन० २२८.२ चार्य : घावों से, चोटों या वृणों से । 'घूमत घायल घायें घने हैं।' कवि० ६.३६ घाय : सं०० (सं० घात>प्रा० घाय)। (१) चोट, व्रण, क्षत । 'मनहुं घाय
महुं माहुर देई ।' मा० २.३५.३ (२) प्रहार । 'मुएहि घालत घाय।' विन.. - २२२.३ घायनि : घाय+संब० । घावों (से) । 'घन घायनि अकुलान्यो।' गी० ३.८.२ घायल : वि०पू० (सं० घातवत् >प्रा० घाइल)। व्रणयुक्त, आहत, क्षतविक्षत ।
"कछु मारे कछु घायल ।' मा० ६.४७ घाल : (समासान्त में) घालक । 'घरघाल चालक कलहप्रिय।' पा०म०छं० १३ Vघाल घालइ : (प्रा० घलइ-फेंकना, नष्ट करना, भीसना) आ०प्रए ।
(१) नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है। 'धरि सब घालइ खीसा।' मा० १.१८३ छं०
(२) संकटग्रस्त करता है । जिमि कपि ल हि घालइ हरहाई।' मा० ७.३६.२ चालक : वि० । विनाशक । 'उपजेहु बंस अनल कुल घालक ।' मा० ६.२१.५ चालकु : घालक+कए । अकेला ही विनाशकारक । 'कुटिल काल वस निज कुल
घालकु ।' मा० १.२७४.१ घालत : वकृ०० (प्रा० घल्लंत) । डालता, छोड़ता (मारता)। 'मुएहि घायत
घाय।' विन० २२०.३ । घालति : पलित+स्त्री० । बिगाड़ती, नष्ट करती, अस्त-व्यस्त करना । 'घने कर
घालति है घने घर घालिहै।' कवि० ७.१२० घालसि : आ०मए० । (प्रा० घल्लसि) । तू मिटा, नष्ट कर (मिटाता है) । जनि
घालसि कुल खीस ।' मा० ५.५६ क घालहिं : आ०प्रब० (प्रा० घरलंति>अ० घरलहिं) । 'मिटाते हैं। 'आपु गए अर
घालहिं आनहिं ।' मा० ७.४०.५ घाला : भूकृ०० (प्रा० घहिल अ) । नष्ट किया, बिगाड़ डाला। चित्रकेतु कर घरू
उन्ह घाला।' मा० १.७६.२