________________
तुलसी 'शब्द-कोश
'घहरात: वकृ०पु० । घर्वर ध्वनि करते, लहराते, वज्र ध्वनि करते । 'घहरात जिमि पबिपात गरजत जनु प्रलय के बादले ।' मा० ६.४९ छं०
घाउ, ऊ : घाय + कए० । (१) आघात । 'अस कहि पर निसस्नहि घाऊ ।' मा० १.३१३.७ (२) चोट, मार । 'हतहिं कोपि तेहि घाउ न बाजा ।' मा० ६.७६.८ (३) चोट से होने वाला क्षत ( घाव ) । 'हृदय घाउ मेरे पीर रघुबीरं ।' गी० ६.१५.१
:
घाएं घात में, लक्ष्य बनाकर, दाँव लगाये हुए । 'संकर साखि रहेउँ एहि घाएँ ।' मा० २.२६२.५
घा : घाएँ (सं० घाते > प्रा० घाए ) । चोट में, प्रहार में । 'ओडिअहिं हाथ असनिहुं के घाए ।' मा० २.३०६.८
घाट, टा: सं०पु० (सं० घट्ट) । जनावतार, जलाशय में उतरने का मार्ग ।' मा० १.३६ मा० ३ ७.४
2617.
घाटारोह : सं०पु०कए० (सं० घट्टारोधः > प्रा० घट्टारोहो > अ० घट्टारोहु) । घाट के चारों ओर घेराबन्दी । 'कीजिअ घाटारोहु ।' मा० २.१८६
घाटि : पूकृ० । घटकर ( कम, हीन) । हम तुम्ह सन कछु घाटि ।' मा० ७०६६ ख 'घाटू : घाट +कए० । एक (उत्तम) घाट । 'रघुबर कहेउ, लखन भल घाटू ।"
मा० २.१३३.१
घात, ता: सं० स्त्री० (सं० घात > प्रा० घता > अ० घत) । (१) लक्ष्य, साधना, निशाना | 'चुकइ म घात मार मुठभेरी । मा० २.१३३.४ (२) प्रहार (सं० पु ं०) । 'उर लात घात प्रचंड लागत ।' मा० ६.६८ छं० (३) वध । 'कहि बिप्र गुर घात ।' मा० ७.६६ (४) संहार । 'देखि भालु कपि निज दल घाता ।' मा० ६.६८.१५ (५) घातक । 'घात चंद्र जियँ जानु ।' दो० ४५६
'घातक : वि० (सं० ) । विनाशकारी । 'भ्राता कुंभकरन रिपु घातक ।' गी० ६.३.२ घातिनी: ( समासान्त में) वि०स्त्री० (सं० ) । विनाश करने वाली जैसे, बीरघातिनी । मा० ६.५४.७
घाती : ( समासान्त में) (१) वि०पु० (सं० घातिन् ) । विनाशकारी, घातक । 'या कुठारु कुठित नृपघाती । मा० १.२८०.१ ( २ ) पतनकारी, अधोगतिदायी । 'ते जड़ जीव निजात्मक घाती ।' मा० ७.५३.६
'घानों : घानी में । 'मारि दहपट दियो जम की घानीं ।' कवि० ६.२०
I
'घानी : सं० स्त्री० (सं० ग्रहणी) । तेल के कोल्हू में एक बार में डाला जाने वाला तिल आदि; उसके ग्रहण की मात्रा या तौल । (२) तिल डाले जाने वाला कोल्हू का भाग । 'समय तोलिक यंत्र, तिल समीचर निकर, पेरि डारे सुभट घालि घानी ।' विन० २५.७ ( 'ग्रहणी' शब्द मूलतः अंत के प्रारम्भिक अंश के