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________________ 264. तुलसी शब्दकोश घुटरुवनि : (घटुरुबा=पैरों का घुटना, लानु)=घुटुरुवा+संब० । घुटनों (से) । 'आँगन फिरत घुटुरुवनि धाए।' गी० १.२६.१ घुन : सं०० (सं० घुण) । एक क्षुद्र कीट जो अन्न, काष्ठ आदि के भीतर ही जन्म पाता और उसी को खाता है (घुन पैदा होने की क्रिया 'घुनना' कहलाती है)। 'कीट मनोरथ दारु सरीरा । जेहि न लाग घुन, को अस धीरा ।' मा० ७.७१.५ घनाच्छर : (घुन+अच्छर) लकड़ी को घुन काटता-खाता है तो अकस्मात कभी. कभी अक्षर का आकार बन जाता है, इसे 'घुणाक्षर' कहते हैं। इसी प्रकार अनायास कोई काम बन जाय तो वहाँ 'घुणाक्षर न्याय' से काम होना कहा जाता है-दे० न्याय । 'होइ घुनाक्षर न्याय जौं पुनि प्रत्यूह अनेक ।' मा० १.११८ व घुनिए : आ०कवा०प्रए । घुन लगने की-सी स्थिति में रहा जाय, मन में जर्जर ___होकर जिया जाय । 'सुमिरि सुमिर बासर निसि घुनिए ।' कृ० ३७ ।। घुरबिनिआ : वि० घरे में दाना चुगने वाला, मलराशि में अन्न बीनने वाला। 'तुलसी मन परिहरत नहिं घुरबिनिआ की बानि ।' दो० १३ घुरघुरात : वकृ.पुं० । घुमघुर बनि करता। 'घुरुषुरात हय' आरो पाएँ ।' मा. १.१५६.८ घुर्मरहिः : आ०प्रब० । घूम रहे हैं+घुमड़ रहे हैं+तरङ्गाकार गति लेते हैं। मिदरि घनहिं घुर्मरहिं निसाना ।' मा० १.३०१.२ घुमि : पूकृ० । चनकर खाकर । 'घुमि धुमि घायल महि परहीं।' मा० ६.६८.६ घुमित : भूकृ० (सं० घूणित) । चकराया हुआ। 'घूर्मित भूतल परेउ तुरंता।' ____ मा० ६ ६५.८ पूघट : सं० । मुखावरण । 'का घूघट मुख मूदहु अबला नारि ।' बर० १७ घुटक : घूट+एक । एक घूट भर । 'लेत जो घूटक पानि ।' दी० २८७ घूघरवारे : वि०० ब० । घुघराले, छल्लेदार । 'कच घुघरवारे।' मा० १.२३३.४ घटी : संस्त्री० । घुट्टी। (शिशुओं को दी जाने वाली औषधि) । 'लोच न सिसुन्ह देहु अमिय घटी।' गी० २.२१.२ घुमत : वकृ.पु० (सं० घूर्णत्>प्रा० घुम्मत) । घूमता, घूमते । 'घूमत घायल घाय घने हैं।' कवि० ६.३६ घूमि : पूकृ० (सं० पूणित्वा> घुम्मिअ>अ० घुम्मि) । घूमकर, चक्कर या पछाड़ खाकर । 'भूमि परे भट घूमि कराहत ।' कवि० ६.३२ घूर : सं० । कूड़े का ढेर, मल राशि । 'चाहत अहारन पहार दारि घर ना।' कवि० ७.१४८ घृत : सं०० (सं०) । घी। मा० १.४.४
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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