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तुलसी शब्द-कोश
(२) भूकृ०स्त्री० (सं० गोपायिता>प्रा. गोविआ=गोविई)। छिपायी।
'ऐसिउ पीर बिहँसि तेहिं गोई ।' मा० २.२७.५ गोऊ : आ० अ ज्ञा मए० । तू छिपा रख। 'कृपिन ज्यों सनेह सो हिये सुमेह गोऊ।'
गी० २.१६.३ गोए : भकृ०० (सं० गोपित>प्रा० गोविय) ब० । छिपाये । 'जे हर कमल हृदय
महुं गोए ।' मा० १.३२८.५ गोकुल : सं०पु० (सं०) (१) गो समूह (२) मथुरा मण्डल का एक भू-भाग ।
कृ० ४२ गोखुरनि : गोखुर+संब० । गाय के खुरचिह्नों (में) । 'कुंभज के किंकर बिकल ___ बूड़े गोखुरनि ।' हनु० ३८ गोगन : इन्द्रियगण विन० २६१.३ गोघात : सं०पु० (सं०) । गोवध, गोहत्या मा० ६.३२ २ गोचर : सं०० (सं०) । गो= इन्द्रियों के विचरण की वस्तु =विषय । 'इन्द्रिय
बोध्य पदार्थ । प्रत्यक्ष । 'लोचन गोचर सुकृत फल ।' मा० २.१०६ । गोठ : सं०पु० (सं० गोष्ठ>प्रा० गोट्ठ) । खरिक, गायों का निवास स्थान, गायों का
बाड़ा, ब्रज । मा० २.१६७.५ गोड़ : सं०० । पर । 'गड़त गोड़ मानो सकुच पंक महँ ।' गी० २.६९.३ गोड़नि : गोड़+संब० । पैरों । 'कमठ की पीठिजा के गोड़नि की गाड़े मानो।'
हनु० ७ गोड़िए : आ०-कवा०-प्रए० । खोदिए, कुदाल से सँवारिए । 'तुलसी विहाइ के ___ बबूर रेंड गोड़िए।' कवि० ७.२५ । गोड़ियाँ : सं०स्त्री०ब ० । बच्चों के सुन्दर कोमल पर (गोड़)। 'छोटी-छोटी
गोड़ियाँ अंगुरियाँ छबीली छोटीं।' गी० १.३३.१ ।। गोत : सं०० (सं० गोत्र प्रा. गोत्र) । वंश परम्परागत जाति जो पूर्व पुरुष के नाम
से चलती है। गोतीत : गोपर (सं०) । इन्द्रियातीत, अतीन्द्रिय । 'अविगत गोतीत चरित पुनीतं ।'
मा० १.१८६.छं० ३ गोतु : गोत + कए । एक ही गोत्र । 'साह ही को गोतु गोतु होत है गुलाम को।'
कवि० ७.१०७ गोतो : सं०पु०कए० (अरबी-गोतः) । डुबकी । 'ज्यों मुदमय बसि मीन बारि
तजि उछरि भभरि लेत गोतो।' विन० १६१.३ गोद : संस्त्री० । क्रोड़, गोदी, अंकवार, अङ कपाली । मा० १.७२.६ गोदहि : गोदा=गोदावरी को । 'पंचबटी गोदहि प्रनाम करि ।' मा० ३.११.२ गोदावरि : गोदावरी। मा० ३.३०.५ गोदावरी : सं०स्त्री० (सं.) । दक्षिण की एक नदी । मा० ३.१३