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तुलसी शब्द-कोश
गोधन : सं०पु० (सं० ) । पालित पशु- समूह । 'दूध दधि माखन भो, लाखन गोधन धन ।' कृ० १६
गोप: सं०पु० (सं० ) । ग्वाला । कृ० १७
गोपद : गाय का खुर, खुरका चिह्न ( जिसमें वर्षा जल भर जाता है) । 'गोपद जल बड़हि घट जोनी ।' मा० २.२३२.२
गोपर : वि० (सं०) गो = इन्द्रिय से परे, अतीन्द्रिय | मा० ३.३२ छं० २ गोपार : गोपर । इन्द्रिय बोध से पार = परे । 'माया गुन गो पार ।' मा० १.१६२ गोह आ०प्र० (सं० गोपायन्ति > प्रा० गोप्पंति > अ० गोप्प हि ) । छिपाते हैं । 'प्रेम प्रमोद परस्पर प्रगटत गोपहिं ।' जा०मं० ८५
गोपाल : सं०पु० (सं०) । (१) ग्वाला, अहीर, पशुपालक । ( २ ) इन्द्रियों का स्वामी = कृष्ण, गोचारक अवतारी ब्रह्म । कृ० ४
गोपिकनि गोपिका + संब० । गोपिकाओं | 'गोपिकनि पर कृपा अतुलित कीन्ह ।'
विन० २.४.३
गोपिका : गोपी । विन० १०६.४
गोपित : भूकृ० (सं० ) । गूहित, छिपाया, तोपदिया । 'खनि गर्त गोपित बिराधा ।'
विन० ४३.५
गोपी : सं० स्त्री० (सं० ) | ग्वालिन । कृ० १७ कृष्ण भक्तिमत में 'गोपी भाव' एक महा भाव है जिसे उपलब्ध कर भक्त अपने को गोपीवत् कृष्ण की प्रेमिका मान कर मधुर - रति में लीन रहता है ।
गोप्यमपि : (सं०) गोप्यम् + अपि । गोपनीय भी । 'गोप्यमणि सज्जन करहिं
प्रकाश ।' मा० ७.६६ ख
गोबर : सं०पु० (सं० गोमय > प्रा० गोवर ) । गाय-भैंस का पुरीष । दो० ७३ गोबर्धन : सं०पु० (सं० गोवर्धन ) । ब्रजमण्डल में एक पर्वत । कृ० १६ गोविंद : सं०पु० (सं० गा विन्दते इति गोविन्दः) । गायों को प्राप्त करने वाला + इन्द्रिय धारण कर अवतीर्ण होने वाला = इन्द्रियाधीश । कृष्ण । परमात्मा । मा० ३.३२.छं० २
गोमति : संस्ी० (सं० गोमती ) । एक नदी । मा० २१८८.८
गोमती : गोमती नदी में । 'सई उतरि गोमती नहाए ।' मा० २.३२२.५
गोमर : सं०पु० (सं०) । गाय मारने वाला, गोमांसव्यवसायी । 'कामधेनु धरनी, कलि गोमर ।' विन० १३६.६
गोमाय : सं०पु० (सं० गोमायु) । सियार । मा० ६७८ छं०
गोमुख : क्रि०वि० (सं० ) । गाय के सम्मुख, गाय की ओर । 'देखि हैं हनुमान गोमुख नाहरनि के न्याय ।' विन० २२०.७